“अनंत चतुर्दशी (चौदस)”
Anant Chaturdashi
Anant Chaturdashiभारत में बहुत से रीती रिवाज़ों व त्यौहारों का संगम हैं। और भारत में हर त्यौहार का दिन भारतीय कैलेंडर के हिसाब ही तय होता है। भारत के वर्ष के नाम तथा महीनों के नामों को हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रथम विक्रम संवत्, दूसरा शक संवत् , तीसरा लोधी संवत है। परन्तु शहरीकरण के कारण भारतीय हिंदी मास के नाम आज कल शायद किसी किसी को ही पता हैं।
इसी प्रकार हिन्दी मास में आने वाले शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष के बारे में भी ज़्यादातर युवा नहीं जानते। और शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष में आने वाली तिथियों के बारे में भी असमंजस में रहते हैं। जैसे चतुर्थी और चतुर्दशी ये दोनों अलग अलग हैं। चतुर्थी का मतलब पक्ष का चौथा दिन होता है। वहीं चतुर्दशी से अभिप्राय पक्ष में आने वाले 14वें दिन से है।
पाश्चात्य संस्कृति के भारत में बढ़ते कदम के बाद कुछ त्यौहार केवल भारत के गाँवों तक ही सिमित रह गए हैं। इन्हीं में से एक त्यौहार का नाम है “अनंत चतुर्दशी” जोकि भारतीय महीनों के हिसाब से भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के 14 वें दिन मनाया जाता है।
क्यों मनाई जाती है अनंत चतुर्दशी
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान विष्णु सृष्टि का पालन पोषण करने वाले हैं। भगवान विष्णु ने 14 लोकों की रचना की।
” तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य और मह “
इस दिन इन 14 लोकों के पूजन के लिए यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। इन्हीं 14 लोकों का पालन करने के लिए भगवान ने 14 अवतार लिए जिस कारण इस त्यौहार को मानाने के लिए “अनंत चतुर्दशी” का नाम दिया गया। और भाद्रपद की शुक्ल पक्ष का 14 वां दिन भगवान विष्णु के नाम समर्पित किया।
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कैसे मनाई जाती है अनंत चतुर्दशी Anant Chaturdashi
घरों में त्यौहार मनाने का पूर्ण माहौल होता है। सुबह सुबह घरों की विशेष सफाई की जाती है। सुबह के कार्यो से निवृत होकर, साफ़ वस्त्र पहने जाते हैं। फिर पवित्र स्थान पर लकड़ी की चौंकी लगा कर उस के ऊपर कलश स्थापित किया जाता है। लाल या पीले रंग का वस्त्र चौंकी पर बिछा कर भगवान विष्णु जी की मूर्ति स्थापित की जाती है।
फिर एक थाली में हल्दी, कुमकुम, चावल, शक्कर व गंगाजल रखकर सूती धागे लिए जाते हैं। चरखे का कत्ता हुआ धागा। इस सूत के धागे की 14 तारें ली जाती हैं और इनमें 14 गांठे लगाई जाती हैं। इन धागों को हल्दी और कुमकुम के साथ रंग चढ़ाया जाता है। भगवान विष्णु जी के आगे परिवार सहित बैठ कर विष्णु जी के अनंत रूपों की तथा 14 गाँठ लगाए हुए अनंत सूत की पूजा की जाती हैं। और ” ॐ अनन्ताय नमः” मन्त्र का जाप कर माथा टेका जाता है।
पूजा करने के पश्चात् घर की बड़ी स्त्री उन सूत्रों को अपने हाथ की कलाई पर बाँध लेती है। और पूरा दिन व्रत रखती है। शाम के समय विष्णु जी की आरती पूजन करके मीठे और फलों का भोग लगाकर व्रत खोलती है। हाथ पर बंधे अनंत सूत्रों को घर में किसी ऊँचे स्थान पर बाँध दिया जाता है।
गणपति बाप्पा का विसर्जन भी इसी दिन किया जाता है जिससे कि इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
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अनंत सूत्र व्रत कथा
एक सुमंत नाम का ब्राह्मण था उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। ब्राह्मण जाति के कारण वह पूजा पाठ बहुत किया करते थे। कुछ समय बाद इनके घर एक कन्या का जन्म हुआ। कन्या का नाम सुशीला रखा गया। वह कन्या बहुत सुन्दर और धार्मिक विचारों वाली थी। कन्या जब बड़ी हुई तब उसकी माँ दीक्षा कस देहांत हो गया।
सुमंत नामक ब्राह्मण ने दोबारा शादी की। पत्नी का नाम कर्कशा था। कुछ समय बाद ब्राह्मण ने अपनी पुत्री सुशीला का विवाह एक ऋषि “कौण्डिन्य” के साथ कर दिया। विदाई का समय आया तो सौतेली माँ कर्कशा ने विदाई में जवाईं के साथ ईंट पत्थर के टुकड़े बांध दिए।
ऋषि कौण्डिन्य बहुत क्रोधित हुए परन्तु चुपचाप सुशीला को विदा करवाकर अपने साथ लेगए। चलते चलते विश्राम के लिए नदी तट पर बैठ गए। सुशीला ने देखा की बहुत सी स्त्रियाँ श्रृंगार किए हुए ख़ुशी ख़ुशी कुछ पूजन कर रही हैं। उत्सुकता बढ़ने लगी तो उससे रहा न गया और उनसे पूछा कि आप सब ये क्या कर रहे हैं। उन्होंने पूरी विधि के साथ अनंत सूत्रों की महिमा बताई।
महिमा सुन कर सुशीला ने भी वहीँ पर अनंत सूत्र लिए और उस पर 14 गांठे लगा कर पूजन किया। तथा उन्हें अपनी कलाई पर बाँध लिया। वापिस अपने पति के पास आकर सारी बात बताई। उसके पति पहले से ही क्रोधित तो थे ही। तो क्रोधवश उन्होंने वह सूत्र तोड़ कर अग्नि में जला दिए। इससे भगवान अनंत का अपमान हुआ जिस कारण अब वह ऋषि हर प्रकार स दुखी रहने लगे।
धन धन्य सब कुछ नष्ट हो गया। कितनी ही बिमारियों ने उन्हें जकड लिया। एक दिन उनकी पत्नी सुशीला ने उन्हें याद दिलाया कि आप ने भगवान अनंत का अपमान किया जिस कारण आज यह हालात हैं। तब उन्होंने पश्चाताप किया।
भगवान अनंत की पूजा मन ही मन करते अनंत सूत्र लेने को भटक रहे थे। तभी अचानक धरती पर गिर पड़े तब भगवान अनंत ने दर्शन देकर कहा कि तुमने अपनी गलती का पश्चाताप किया इसलिए अब मैं प्रसन्न हूँ। घर जाकर व्रत करो और यह व्रत लगातार हर वर्ष 14 वर्ष तक करते रहो तो सब कुछ संपन्न होगा। इस प्रकार ऋषि कौंडिण्य ने विधि पूर्वक व्रत किए तथा कष्टों से मुक्ति पाई। जो भी प्राणी इस व्रत को करता है वह उसदिन इस कहानी को पढ़ता या सुनता है।
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सबसे पहले यह व्रत किसने किया था!?
सबसे पहले कृष्ण भगवान ने पांडवों को विष्णु जी के अनंत रूप व 14 लोकों के बारे में बता कर यह व्रत करवाया था। एक बार जब दुर्योधन पांडवों से मिलने के लिए गया। माया महल देख कर वह चकित हो गया। यह महल माया महल था पृथ्वी जल दिखाई देती थी और जल पृथ्वी नज़र आता था। ऐसे में दुर्योधन को धोखा हो गया। और वह पृथ्वी नज़र आने वाले जल पर चलने गया और तालाब में गिर गया।
इस पर द्रौपदी ने उपहास किया और कटाक्ष किया ‘ अंधे का पुत्र अंधा ‘. इसी बात से दुर्योधन के मन में बदले की आग सुलगने लगी। इसी का प्रतिशोध लेने के लिए दुर्योधन ने मां शकुनी के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। और जुआ खेलने की तैयारी की। और साथ में कुछ शर्ते भी रखीं।
मामा शकुनी तो अपनी चाल से जुए का खेल आगे बढ़ाता रहा। इस खेल में पांडव अपना सभी कुछ हार गए। अंत में पांडवों ने द्रौपदी को दांव पर लगाया। और जुए में वे द्रौपदी को भी हार गए। यही वो समय था जब दुर्योधन ने अपना बदला लेना था। इसी बदले की ज्वाला में दुर्योधन ने द्रौपदी का चीर हरण किया।
जुए में हारने के कारण पांडवों को 12 वर्ष का वनवास तथा 1 वर्ष का अज्ञात वास की सजा मिली। अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए पांडवों ने अनेकों कष्ट सेहन किए। एक दिन धर्मराज युधिष्टर ने कृष्ण भगवान से इन कष्टों से मुक्ति का उपाय पूछा।
तब भगवान कृष्ण ने बताया कि जुए के कारण माँ लक्ष्मी रुष्ट है। उनको शांत करने के लिए व अपने कष्टों से मुक्ति के लिए आप पांडवों को अनंत चतुर्दशी के दिन भगवन विष्णु की पूजा व व्रत करना होगा। और अपनी गलतियों का पश्चाताप कर भगवान से मांफी मांग कर प्रार्थना करनी होगी। तभी तुम इन कष्टों से मुक्ति पा कर अपना राजपाठ प्राप्त कर सकते हो।
इतना समझा कर श्री कृष्ण ने पांडवों को ब्राह्मण सुमंत उस की पत्नी दीक्षा तथा कन्या सुशीला की कथा सुनाई। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ।
अनंत चतुर्दशी का उदेश्य
अनंत चतुर्दशी का पर्व भगवान विष्णु जी की तथा माँ लक्ष्मी जी के पूजन के साथ मनाया जाता है। मनोकामना पूर्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। यह पावन व्रत हरि विष्णु के अनंत स्वरुप की पूजा हेतु किया जाता है।
इस व्रत को करने से घर परिवार में ग्रहों की बाधा से मुक्ति मिलती है। दुर्घटना इत्यादि से रक्षा बनी रहती है। पुरे परिवार में सुख समृद्धि आती है।
Anant Chaturdashi वर्ष 2021 में यह त्यौहार 19 सितम्बर दिन रविवार को मनाया जा रहा है।
पढ़े कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है “गणेश चतुर्थी” का त्यौहार
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