“भाई दूज का त्यौहार”
Bhai Dooj in 2023 is on the Tuesday, 14th of Nov 2023
जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत त्यौहारों का देश है। यहाँ हर धर्म के लोग रहते हैं और अपने-2 धर्म व् श्रद्धा अनुसार पर्व मनाते हैं। साथ ही हर धर्म का सम्मान करना हमारी संस्कृति में है।
भारतीय संस्कृति में जैसे कि रक्षाबंधन, दशहरा, दिवाली, करवा चौथ, जन्माष्टमी, तीज, गणेश चतुर्थी इत्यादि हमारे यहाँ के प्रमुख त्यौहार हैं। उन्हीं सभी त्यौहारों में भाई बहन के रिश्ते को समर्पित “भाई दूज” का पर्व भी ख़ास है। रक्षाबंधन की ही तरह भाई बहन के स्नेह व् पवित्रता से भरपूर है “भाई दूज”।
इस लेख में जानेंगे कि-
भाई दूज का त्यौहार कब मनाया जाता है?
कैसे मनाया जाता है ये पर्व?
कहाँ मनाया जाता है भाई दूज?
और क्यों मनाया जाता है?
कब मनाया जाता है “bhai dooj/भाई दूज”?
भाई बहन के अटूट रिश्ते को समर्पित भाई दूज का त्यौहार दिवाली के 2 दिन बाद मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को यम द्वितीय तिथि के नाम से भी जाना जाता है।
इसे यम द्वितीय तिथि क्यों कहा जाता है इसके पीछे की कहानी जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए।।।
कैसे मनाया जाता है यह पर्व bhai dooj
दीपावली के 5 दिवसीय त्यौहार का पांचवां दिन भाई दूज के नाम से मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई का टीका करती है। लकड़ी की चौंकी पर पूर्व दिशा की तरफ भाई का मुख करवाकर यह रस्म की जाती है। बहन अपने भाई के माथे पर कुमकुम, चन्दन व् चावल से तिलक लगाती है। फिर भाई को मिठाई खिलाकर उसकी आरती करती है। इसके बाद भाई को कोई भेंट और नारियल देती है। भगवान से अपने भाई की सुख समृद्धि और लम्बी आयु की प्रार्थना करती है।
भाई भी अपनी बहन को कुछ उपहार इत्यादि के रूप में अपना आशीर्वाद तथा बहन की हर प्रकार से रक्षा का आश्वासन देता है। हर बहन इस दिन जब तक यह रस्म नहीं निभा लेती तब तक वह व्रत रखती है। तिलक के बाद ही वह भाई को भोजन करवाकर खुद भोजन करती है।
कहाँ कहाँ मनाया जाता है भाई दूज?
भारत के हर क्षेत्र में मनाया जाने वाला यह त्यौहार कई राज्यों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। जबकि इसका अर्थ और महत्व सभी स्थानों पर एक जैसा ही है।
हरियाणा-पंजाब में इसे भैया दूज या भाई दूज के नाम से जाना जाता है।
पश्चिम बंगाल में भाई फोटा पर्व के नाम से इस त्यौहार को जाना जाता है।
महाराष्ट्र और गोवा में इसे “भाऊ बीज” के नाम से मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश में भी इसे भैया दूज कह कर ही सम्बोधित करते हैं। और यहाँ तिलक के बाद भाई को शक्कर व् पताशे देने की परंपरा है।
बिहार में भी इसे भाई दूज ही कहा जाता है लेकिन यहाँ यह त्यौहार मनाने की एक अलग ही विधि है। यहाँ बहने अपने भाई को भला बुरा बोलती हैं, डांटती हैं। और फिर कुछ समय बाद माफ़ी मांगी जाती है। इसके बाद भाई बहन अपना मन मुटाव दूर करते हैं। फिर बहन अपने भाई को तिलक लगा कर मिठाई खिलाती है।
भारत से जुड़े पड़ोसी देश नेपाल भी इस त्यौहार की झलक देखने को मिलती है। नेपाल में इसे “भाई तिहार” के नाम से जाना जाता है। ‘तिहार’ का अर्थ तिलक होता है। और नेपाल में इस तिलक को विशेषकर 7 रंगों से मिलाकर बनाते हैं।
एक ही त्यौहार के ऐसे विभिन्न रंग केवल भारत में ही देखने को मिल सकते हैं। इसलिए तो शायद विदेशी लोगों को यहाँ की परम्पराएँ, संस्कृति, पर्व-त्यौहार आकर्षित करते हैं।
“भाई दूज” क्यों मनाया जाता है जानिए इसके पीछे का कारण
यह त्यौहार मनाए जाने का विशेष कारण है। जिस वजह से लोगों ने यह त्यौहार मनाना प्रारम्भ किया। शास्त्रों के अनुसार सूर्य और संज्ञा की दो संताने थी। पुत्र यमराज और पुत्री यमुना। सूर्य का तेज सेहन न कर पाने के कारण संज्ञा उत्तरी ध्रुव में छाया बन कर रहने लगी वहां ताप्ती नदी और शनि देव का जन्म हुआ। अब संज्ञा (छाया) यम और यमुना के साथ भेदभाव करने लगी। इसी कारण यमराज ने अपनी यमपुरी बसा ली। यहाँ यमुना देखती थी कि भाई यमराज पापियों को दंड बहुत देता है। वह दुखी होती। और फिर गोलोक चली गई।
अब bhai dooj का इस सबसे क्या सन्दर्भ है वह इस कहानी से जानिए –
भाई यम और बहन यमुना का आपस में बहुत प्रेम था। यमुना, यमराज को अपने घर पर आने के लिए आमंत्रित किया करती थी, लेकिन व्यस्तता के कारण यमराज उसके घर न जा पाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक से जा पहुँचे। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कराया। बहन यमुना ने अपने भाई का बड़ा दिल से आदर-सत्कार किया। तरह-तरह के व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया और भाल पर तिलक लगाया। जब यमराज वहां से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने को कहा।
यमुना ने कहा कि यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यह वर दीजिए कि आज के दिन हर साल आप मेरे यहां आया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे और इस दिन जो भी बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसे भोजन करवाए, उसे आपका भय न रहे। इसी के साथ यमराज ने यमुना को ये भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो उन पर मेरा प्रकोप नहीं रहेगा।
यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। कहते हैं तभी से बहन-भाई का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि जो पुरुष यम द्वितीया को बहन से तिलक करवाकर बहन के हाथ का खाना खाता है उसे विविध प्रकार के सुख मिलते हैं।
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इसके अलावा एक कथा भगवन श्री कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा से जुड़ी है। आइए जानते हैं क्या है वो कहानी –
भगवन कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। वह दिन हम नरकाचतुर्दशी (चौदस) के नाम से जानते हैं। वध करने के बाद भगवान् कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गए। बहन ने ख़ुशी-2 फूल मालाओं से सत्कार किया। भाई के मस्तक पर तिलक कर आरती उतारी और उन्हें भोजन करवाया। इस प्रकार प्यार और स्नेह भरा यह दिवस भाई टिका या भाई दूज के नाम से मनाया जाने लगा।
आज के दौर में भी यह परम्परा चली आ रही है। सभी भाई अपनी-अपनी बहनों के घर अपने सामर्थ्य के अनुसार फल, मिठाई व् उपहार लेकर टीका करवाने के लिए जाते हैं।
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