“देव उठनी एकादशी”
Dev Uthani Ekadashi
भारत के विभिन्न तीज- त्यौहारों में से एक है “देव उठनी एकादशी”। देव उठनी एकादशी को विभिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे कि- देव उठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी।
देव उठनी एकादशी से क्या अभिप्राय है !?
जैसा कि त्यौहार के नाम से ही पता चल रहा है कि देव का उठना अर्थात भगवान का लम्बी निंद्रा से जागना। जग के पालनकर्ता भगवान विष्णु जी का योग निंद्रा से जागना देव उठनी कहलाता है।
देव उठनी मानाने का कारण
भारतीय संस्कृति के अनुसार देवी देवताओं की पूजा-अर्चना पूरे विधि विधान से की जाती है। यहाँ तक कि रात्रि में भगवान के विश्राम की व्यवस्था भी की जाती है।
इसी प्रकार भगवान विष्णु हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पाताल लोक में योग निंद्रा में चले जाते हैं। इन 4 महीनों में सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। और फिर देवउठनी के दिन भगवान अपनी योग निंद्रा से बाहर आते हैं और पृथ्वी संचालन का कार्य अपने हाथों में लेते हैं।
कब मनाया जाता है देवोत्थान त्यौहार ?
हिन्दू कैलेंडर (हिन्दू मास) में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन देव उठनी एकादशी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विधि पूर्वक भगवान विष्णु को योग निंद्रा से जगाया जाता है।
देव उठनी एकादशी कैसे मनाई जाती है ?
भारतवासी सभी त्यौहारों को भक्ति भाव व् शुद्धता के साथ मनाते हैं। इस दिन भी भक्तजन सवेरे नहा कर, साफ़ वस्त्र धारण करते हैं। पहले समय में या फिर आज कल गाँवों में पूरे घर को धो कर या गोबर से लीप कर शुद्ध कर लिया जाता है। घर का आंगन भी शुद्ध किया जाता है।
घर के आंगन में एक स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर के वहां पूजन का स्थान बनाया जाता है। कच्चे चावलों को पीस कर एक घोल तैयार किया जाता है। या फिर एक प्रकार की खड़िया मिट्टी होती है उस का घोल बना कर इससे शुद्ध स्थान पर भगवान् विष्णु के चरणों के चिन्ह बनाए जाते हैं। फिर इन्हें गेरू इत्यादि से भी सजाया जाता है। इस दिन भक्तजन व्रत उपवास करते हैं।
उसी शुद्ध स्थान पर कुछ फल मिठाई रख कर उस स्थान को बड़े बर्तन से ढक दिया जाता है। इस प्रकार पृथ्वी पर बनाया गया पूजन का स्थान पूरा दिन घर के सभी सदस्यों को धार्मिक भावना से जोड़कर रखता है। व्रत रखने वाले इस दिन अनाज व् नमक न खाकर एक समय फलाहार ही खाते हैं।
पूजन विधि
सूर्यास्त के पश्चात् परिवार के सभी सदस्य इस स्थान के पास बैठकर विधि पूर्वक पूजन करते हैं। और भगवान को जगाने के लिए मंत्र या कुछ पंक्तियाँ बोलते हैं जो इस प्रकार हैं-
“उतिष्ठो उतिष्ठ गोविन्दों
उतिष्ठो गरुड़ ध्वज
उतिष्ठो कमला कान्त
जगताम मंगलम कुरु।।”
मंत्र तो बहुत हैं लेकिन संस्कृत के मंत्रो में लिखने व् बोलने में अशुद्धता का भय बना रहता है। इसीलिए सभी सरल भाषा में “उठो भगवान, तजो निंद्रा तथा उठो देवा बैठो देवा” बोलकर भगवान विष्णु को उठाते हैं। साथ ही शंख व् घंटी बजाकर उठाने की प्रक्रिया करते हैं। और फिर तिलक लगाकर, फल मिठाई का भोग लगाकर भगवान के जयकारे लगाए जाते हैं। भगवान को नए वस्त्र तथा जनेऊ इत्यादि अर्पण करते हैं। साथ में नारियल भी अर्पित किया जाता है। पूजन में रखे फल व् मिठाई प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है। जबकि नए रखे वस्त्र किसी ब्राह्मण को दे दिए जाते है।
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देव उठनी का महत्व
इस त्यौहार का अपना महत्व है। माना जाता है कि इस दिन व्रत पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है।
पंच तीर्थ महास्नान इसी दिन से शुरू होता है और पूर्णिमा तक चलता है।
तुलसी विवाह इसी दिन किया जाता है। देव उठनी के दिन ही तुलसी विवाह का पर्व भी मनाया जाता है।
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