“धनतेरस | धन त्रियोदशी”
Dhanteras
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष का 13वां दिन त्रियोदशी या तेरस के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान ‘धन्वन्तरि’ की पूजा की जाती है। इस दिन का महत्व समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। समुन्द्र मंथन के समय भगवान विष्णु के अंश अवतार धन्वंतरि ‘अमृत कलश’ के साथ प्रगट हुए थे।
धनतेरस के दिन ख़रीद दारी का क्या महत्व है!?
जब भगवान धन्वंतरि ‘अमृत कलश’ के साथ प्रगट हुए तब उनके साथ बहुत से आभूषण तथा बहुमूल्य रत्नों की प्राप्ति भी हुई थी। और जिस पात्र को अमृत कलश कहा गया वह ‘पीतल’ धातु का बना हुआ था। इसी कारण इस दिन यानि धनतेरस के दिन लोग पीतल का बर्तन ख़रीदा करते हैं। साथ ही अपने-अपने सामर्थ्य अनुसार आभूषण खरीदते हैं। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। कई लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसका यह कारण है कि यह यानि चांदी चन्द्रमा का प्रतीक है जो कि शीतलता प्रदान करता है और इससे मन में संतोष रूपी धन का वास होता है।
वैसे, संतोष को सबसे बड़ा धन माना गया है। जो व्यक्ति जीवन की हर परिस्थिति में संतुष्टि का अनुभव करता है वही सबसे धनवान है।
धनतेरस का आयुर्वेद से क्या सम्बन्ध है!?
विष्णु अंश से अवतरित ‘धन्वंतरि’ समुद्र मंथन के समय पृथ्वी लोक पर आए थे। इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजाएं हैं। दो भुजाओं में शंख व् चक्र हैं। जबकि अन्य दो भुजाओं में से एक में औषधि तथा दूसरी भुजा में अमृत कलश है।
आयुर्वेद के संबंध में कहा जाता है कि सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने एक लाख श्लोक वाले आयुर्वेद की रचना की। जिसे अश्विनी कुमारों ने सीखा और फिर देव इंद्र को सिखाया। इंद्रदेव ने इससे धन्वंतरि को कुशल बनाया।
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धन्वंतरि को आरोग्य का देवता भी कहा जाता है। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश से ही दिवोदास हुए जिन्होंने विश्व का पहला ‘शल्य चिकित्सा’ काशी में स्थापित किया। जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाए गए थे। सुश्रुत, दिवोदास के ही शिष्य व् ऋषि विश्वामित्र के पुत्र थे। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन यानि शल्य चिकित्सक थे।
दीपावली के अवसर पर धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
विष्णु भगवान ने इन्हें द्वापर युग में दूसरा जन्म लेने का वरदान दिया था। और सिद्धियां प्राप्त करने तथा पृथ्वी लोक में प्रसिद्ध होने का वरदान भी दिया था। ऐसा क्यों हुआ था? पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । धन्वंतरि का दूसरा जन्म
जैन धर्म में धनतेरस (त्रियोदशी) का क्या महत्व है!?
जैन धर्म के अनुयायी धनतेरस को “ध्यान तेरस” के नाम से भी पूजते हैं। इस दिन भगवान महावीर तीन दिन के ध्यान में लीन हो गए थे तथा तीसरे दिन यानि अमावस्या (दीपावली) के दिन निर्वाण/ मोक्ष को प्राप्त हुए। इन्होंने 12 वर्ष तक कठिन तपस्या की तथा 72 वर्ष की आयु में इन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस प्रकार जैन धर्म में इनके जन्म दिवस को महावीर जयंती तथा निर्वाण दिवस ( मोक्ष) को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाते हैं।
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