“दशहरा”
Dussehra
भारत के सन्दर्भ में कहा जाता है कि “वर्ष के जितने दिन भारत में उतने त्यौहार”। विभिन्नताओं का देश है भारत, इस लिए सभी लोग त्यौहारों को अपने-2 ढंग से मनाते हैं।
सभी त्यौहारों में दशहरा भी एक विशेष त्यौहार है। भारत के एक दो राज्यों को छोड़ कर बाकि पूरा देश दशहरा मनाता है। दशहरा मनाने का ढंग कुछ राज्यों का अलग-2 है। वहीं भारत में हर त्यौहार के साथ कोई न कोई विशेषता या कारण भी निहित है।
इस लेख में जानिए ~
दशहरा कब मनाया जाता है?
क्यों मनाया जाता है ?
कैसे मनाया जाता है ?
बस्तर का दशहरा
मैसूर का दशहरा
कुल्लू का दशहरा
राजस्थान/ गुजरात का दशहरा
जम्मू कश्मीर का दशहरा
दशहरे से समाज को सन्देश
दशहरा कब मनाया जाता है
भारत में हर तीज त्यौहार का दिन अंग्रेजी कैलेंडर के आधार पर नहीं बल्कि हिन्दू कैलेंडर के आधार पर सुनिश्चित किया जाता है। इसी प्रकार दशहरा अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की 10वीं तिथि को मनाया जाता है। जब भगवन श्री राम ने रावण का वध कर के बुराई पर अच्छाई की जीत प्राप्त की थी। वह दिन हिन्दू कैलेंडर के अनुसार अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि का दिन था। इस दिन श्री राम ने रावण का वध किया था। यह त्यौहार रामायण काल से मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है दशहरा
अश्विन शुक्ल पक्ष की पहली तिथि जिसे हम पहला शरद नवरात्र कहते हैं। माँ दुर्गा ने इसी पक्ष की नवमी तिथि तक यानि 9 रातें और 10 दिन तक महिषासुर के साथ युद्ध किया था। और इतने दिन युद्ध के बाद माँ ने महिषासुर का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए ये 9 रातें व् 10 वां दिन माँ दुर्गा की पूजा से मनाया जाता है। साथ ही दशहरा भी बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न में धूम धाम से मनाया जाता है। दोनों स्थितियों में असत्य पर सत्य की जीत हुई थी।
एक ओर इसी दिन माँ दुर्गा ने राक्षक का वध किया था वहीं भगवन श्री राम ने रावण का वध कर विजय हासिल की थी। यही वजह है कि इसे हम विजय दशमी भी कहते हैं।Dussehra
दशहरा कैसे मनाया जाता हैDussehra
भारत में सभी त्यौहार भक्तिभाव के साथ-2 शुद्धता के साथ मनाए जाते हैं। शुद्धि और पवित्रता का अर्थ घर, दुकान, दफ्तर व् स्वयं के शरीर की सफाई से है। त्यौहारों का एक अलग ही उत्साह होता है। इस दिन साफ़ वस्त्र पहन कर तन मन से ईश्वर की पूजा की जाती है।
दशहरे से 9 दिन पहले जौं बीजे जाते हैं। फिर दशहरे के दिन इन्हें तोड़ कर पूजन के थाल में रखा जाता है। सह परिवार भगवान गणेश जी, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती और भगवान राम की पूजा की जाती है। बहन अपने भाई व् पिता के कान पर जौं टांगती है। और यह कामना करती है कि परिवार हमेशा खुशियों से हरा भरा रहे।
विजय दशमी से दस दिन पहले ही गाँवो-शहरों में सामुहिक जगहों पर रामलीला का प्रदर्शन किया जाता है। विजय दशमी के दिन दोपहर से लेकर शाम तक झांकियों का दौर चलता है। इनमें राम, लक्ष्मण, माँ सीता, हनुमान जी और वानर सेना को दर्शाया जाता है।
शाम को बड़े ग्राउंड में जहाँ विशाल रावण लगा होता है, सभी वहां एकत्रित होते हैं। एक बड़ा मेला लगता है और शाम के वक़्त राम की भूमिका निभाने वाला कलाकार इस विशाल रावण को तीर मारता है। जिसके बाद रावण में विस्फोटक(पटाखे) फूट पड़ते हैं। और रावण जल कर राख हो जाता है। रावण के साथ साथ मेघनाथ और कुम्भकरण के भी पुतले लगे होते हैं। उनमें भी तीर मारकर उनका अंत किया जाता है।
इस दौरान मेलों में राम, रावण और वानर सेना की तरह दिखने वाले अस्त्र शस्त्र खिलौनों के रूप में मिलते हैं। बच्चों को ये बहुत लुभाते हैं।
भारत के कई राज्यों का दशहरा दुनियाभर में मशहूर है
1. बस्तर का दशहरा (छत्तीसगढ़ में स्थित बस्तर जिला)Dussehra
माना जाता है कि जब श्री राम को 14 वर्ष का वनवास मिला तब श्री राम ‘बस्तर के दण्डकरण्य’ में रहे थे। बस्तर के जगदलपुर में माँ दंतेश्वरी का मंदिर है जहाँ आस पास के गाँवों से लोग दशहरे के दिन माँ के दर्शन व पूजन करने पहुँचते हैं। अश्विन मास शुरू होने से एक दिन पहले यानि अमावस्या के दिन बस्तर के राज परिवार के सदस्य अपनी लाव- लश्कर ( सेना और उसके साथ रहने वाली तमाम सामग्री) के साथ पैदल काछन गुड़ी तक जाते हैं। वहां कांटो के बीच झूलती हुई काछन देवी है। उनसे दश्हरा मानाने की अनुमति ली जाती है। ताकि कोई विघ्न न आए। इसके बाद दशहरा मानाने की शुरुवात की जाती है।
लगभग 600 वर्षों से यह परंपरा चलती आ रही है। काछन देवी रण की देवी कही जाती है। कई दिनों तक दशहरे का जश्न मनाया जाता है।
Dussehra
2. मैसूर का दशहरा (कर्नाटक)
यहाँ लम्बे समय तक मनाया जाने वाला त्यौहार दश्हरा दुनियाभर में मशहूर है। सभी लोग यहाँ का दशहरा देखने के उत्सुक रहते हैं। विदेशों से भी बहुत से लोग इस मौके पर यहाँ आते हैं।
यहाँ के दशहरे की विशेषता क्या है – यहाँ का प्रसिद्ध मैसूर पैलेस! जिसे कि अम्बा विलास महल भी कहा जाता। महल को दीप मालाओं से दुल्हन की तरह सजाया जाता है। महल का कोई भी कोना ऐसा नहीं रहता जिसे ख़ूबसूरती से सजाया न गया हो। हाथियों को सोने चाँदी के गहने डाल कर, भव्य तरीके सजाया जाता है। हाथियों के ऊपर हौदा (हाथी की पीठ पर कसा जाने वाला आसन) रख कर माँ चामुंडेश्वरी माता की मूर्ति रखी जाती है। फिर सारे शहर में यात्रा निकाली जाती है।
यह परंपरा सन 1880 में शुरू हुई थी। ये यात्रा मैसूर पैलेस से शुरू होकर दशहरा मैदान तक जाती है। हाथी पर माँ की मूर्ति को जिस हौदे में बिठाया जाता है वह सोने का बना होता है। जिसमे 80 किलो सोना लगा हुआ होता है। हौदे पर की गई फूल पत्तियों की नकाशी यहाँ के कारीगरों की कुशलता का प्रमाण है।
पूरी यात्रा नाचते गाते बैंड बाजे के साथ की जाती है। इस दौरान जलूस वहां पहुँचता है जहाँ एक ख़ास पेड़ है। जिस के पीछे पांडवों ने अपने गुप्तवास के दौरान हथियारों को छिपाया था। इस पेड़ की पूजा आज भी लोग करते हैं।
अम्बा महल के सामने मेला लगता है जिसमें प्रदर्शनी लगाई जाती है। यह मेला काफी दिनों तक चलता है।
Dussehra
3. कुल्लू का दश्हरा Dussehra
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा भी ख़ास है। यहाँ का दशहरा पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। कुल्लू के दशहरे को अंतर्राष्ट्रीय फेस्टिवल घोषित किया गया है। यहाँ रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले नहीं जलाए जाते। बल्कि कुल्लू के लोग अपने अराध्य देव रघुवीर जी का पूजन करते हैं तथा ग्राम की कुशलता की प्रार्थना करते हैं।
विशेषता – पूरे भारत में दशमी के दिन दशहरे का समापन माना जाता है लेकिन कुल्लू में दशहरे का त्यौहार आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से शुरू होता है।
कुल्लू में ऐसा क्यों होता है इसके पीछे भी एक कहानी है-
यहाँ का दशहरा रावण को मार कर विजय प्राप्त करने से नहीं जुड़ा हुआ। यह एक राजा से सम्बंधित है। कुल्लू में सन 1636 में जगत सिंह नाम का राजा था। वह मणिकर्ण यात्रा पर गया। वहां उन्हें पता चला कि एक ब्राह्मण के पास अद्भुत और कीमती हीरा है।
राजा ने वह रत्न प्राप्त करने के लिए ब्राह्मण के पास अपने सैनिकों को भेजा। ब्राह्मण के वह रत्न न देने पर सैनिकों द्वारा उसे व् उसके परिवार को बहुत परेशान किया गया। जिस वजह से ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ और राजा को श्राप दे दिया। इसके बाद ब्राह्मण ने परिवार सहित आत्महत्या कर ली।
इस घटना के बाद राजा बहुत बिमार रहने लगा। वहां एक साधु आया जिसने राजा को श्राप मुक्त होने का उपाय बताया कि यदि आप अयोध्या से लाकर रघुनाथ जी की मूर्ति यहां स्थापित करेंगे और उसकी पूजा कीजाएगी तभी आप श्राप मुक्त हो सकते हैं। राजा ने वैसा ही किया और फिर राजा ठीक होने लगा। तब से राजा ने अपना साम्राज्य व् अपना जीवन रघुनाथ जी को समर्पित कर दिया।
इसी कारण कुल्लू में दशहरे वाले दिन ग्रामीण देवता के रूप में सभी ग्रामवासी रघुनाथ जी की पूजा करते हैं।
कुल्लू का दशहरा मानाने की प्रथा
राजा द्वारा देवी देवताओं को न्योता – जैसे ही अश्विन मॉस शुरू होता है तभी राजा सभी सेवी देवताओं को रघुनाथ जी के सम्मान में यज्ञ का न्योता देते हैं। दशहरे की देवी मनाली की ‘ हिडिम्बा ‘ देवी कुल्लू आती हैं। 100 से ज्यादा देवी देवताओं को पालकियों में बिठाया जाता है। पालकी तथा देवी देवताओं को खूब सजाया जाता है।
रथ यात्रा – हिडिम्बा देवी, माता सीता तथा रघुनाथ जी की प्रतिमा को रथ में बिठाकर दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। जाते समय जिसके पास जो भी बिगुल, ढोल, नगाड़े, बांसुरी इत्यादि हो बजा कर नृत्य करते हुए जाते हैं।
मौहल्ला उत्सव – जब यह यात्रा 6 दिन तक एक स्थान पर रूकती है तब सभी देवी देवता इकट्ठे होकर मिलने आते हैं। जिसे कि मौहल्ला उत्सव कहते हैं। सभी लोग मिलकर पूरी रात नाच गाना करते हैं।
7वें दिन रथ को ब्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है। वहां पर लंका दहन का आयोजन किया जाता है। फिर रघुनाथ जी को रथ यात्रा के साथ वैसे ही नाचते गाते रघुनाथ पुर के मंदिर स्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार यहाँ के लोगों का मानना है कि इस अवसर पर सभी देवी देवता शामिल होते हैं।
Dussehra
4. राजस्थान और गुजरात का दशहराDussehra
दोनों राज्य साथ साथ होने के कारण यहाँ दशहरे से जुड़ी मान्यताएं व् रिवाज़ एक जैसे ही हैं। नवरात्रों के 9 दिन के उपवास के बाद 10वें दिन प्रातः देवी पूजन तथा दशहरा पूजन होता है। कुछ लोग अष्टमी को देवी पूजन कर व्रत खोलते हैं। तो वहीं कुछ लोग नवमी के दिन कन्या पूजन कर व्रत खोलते हैं। कन्या पूजन को कंजक भी कहा जाता है। इस दौरान सुबह छोटी छोटी 9 कन्याओं को घर बुलाया जाता है। उनके पैर धोकर, माथे पर तिलक लगा कर पूजा जाता है। फिर इन्हे भोग लगा कर हलवा पूरी इत्यादि खिलाया जाता है। जाते समय कुछ पैसे या तोहफा देकर विदा करते हैं। इसके बाद घर के सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
गुजरात में भी लोग इस दिन उसी तरह पूजन के बाद जलेबी फाफड़ा खाना पसंद करते हैं। दोनों राज्यों में इन दिनों नई खरीदारी करने की भी परंपरा है। नवरात्रों के दिनों को खरीदारी के लिए शुभ मानते हैं।
5. जम्मू कश्मीर का दशहरा
यहाँ भी उसी श्रद्धा भाव से नवरात्रों व् दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है। भक्तजन 9 दिन का व्रत उपवास करते हैं। यहाँ पर स्थित माता खीर भवानी के मंदिर जाकर पूजा करते हैं। फिर दशहरे की पूजन विधि शुरू करते हैं। इस राज्य में रहने वाले हिन्दू लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मना कर दशहरे का त्यौहार मनाते हैं।
इस प्रकार विभिन्न राज्यों में अलग अलग ढंग से यह त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन कारण और उदेश्य यही है “बुराई पर अच्छाई की जीत”, “असत्य पर सत्य की विजय का जश्न”। Dussehra
दशहरे से समाज में सन्देश
रावण के घमंड को ख़त्म होता हुआ दिखाने के लिए उसके बड़े-बड़े पुतले बनाकर जलाए जाते हैं। जो यह सन्देश देता है कि प्राणी कितना भी बड़ा क्यों न हो चाहे शरीर से चाहे धन से, लेकिन बुरे कार्य करने पर वह ज़्यादा समय तक टिक नहीं सकता।
Dussehra
Dussehra Dussehra
जानिए कैसे और कब किए जाते हैं श्राद्ध “पितृपक्ष | श्राद्ध”
Recent Comments