“गोपाष्टमी | गोपाल अष्टमी”

Gopashtami

वर्ष 2021 में गोपाष्टमी 11 नवंबर को है।

भारत में विशेष कर हिन्दू धर्म में गाय को पूजनीय मानते हैं। गाय को माता कहा जाता है। सृष्टि के सभी जानवरों में केवल गाय एक ऐसा जानवर है जिसे माता का दर्जा दिया गया है। इस के पीछे एक कारण है जिस वजह से गाय को “गौ माता” कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की तब सब से पहले पृथ्वी पर गाय को ही भेजा। गाय में मानवीय भावनाएं होती हैं। ऐसा मानना है कि माँ शब्द गौवंश से ही आया शब्द है।

गाय की विशेषता 

विकास की प्रक्रिया में गाय का बहुत योगदान है। पेट भरने के लिए जितनी सुविधाएं आज हैं उतनी पहले समय में नहीं हुआ करती थी। इसलिए ये माना जाता था कि जिस घर में गाय हो उस घर में अकाल पड़ने की स्थिति में भी कोई भूखा नहीं मरेगा। गाय से दूध और दूध से बने सभी खाद्य पदार्थ पौष्टिकता से भरपूर होते हैं।

वहीं घर का चूल्हा जलाने के लिए गाय का गोबर ईंधन का काम करता है। इस प्रकार गाय, एक माँ की तरहं जीवन व् पोषण देती है। गाय भगवान का वरदान है। माना जाता है कि गाय के हर अंग में देवी देवताओं का वास है। गाय पवित्र पशु है इस के गोबर तथा मूत्र तक को भी पवित्र माना जाता है। भारत में बहुत सी बिमारियों का इलाज करने के लिए गौ मूत्र को दवाई का रूप देकर प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार गाय को हिंदू धर्म में पूजनीय मानते हैं। और गाय की विशेष पूजा करते हैं। गाय की पूजा का वह एक विशेष दिन त्यौहार की तरह मनाया जाता है, जिसे कि हम “गोपाल अष्टमी” कहते हैं।

गोपाल अष्टमी कब मनाई जाती है !? Gopashtami

गोपाल अष्टमी का त्यौहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होता है। यह दिन गायों को समर्पित होता है। छोटी बड़ी सभी गाय व् बछड़े के प्रति कृतज्ञता, सम्मान व् प्रेम बरसाया जाता है।

इस त्यौहार को मनाने की पूजन विधि क्या है !?

गोपाल अष्टमी पूजन के लिए आवश्यक सामग्री- तेल, पानी, चावल, वस्त्र, गुड़, फूल, चन्दन, रौली, मिठाई व् धूप -अगरबत्ती।

पूजन विधि – कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन प्रातः काल गाय, बछड़ों को नहला कर साफ़ सुथरा किया जाता है। फिर रौली चन्दन का तिलक लगाया जाता है। फूल माला डाली जाती है तथा सींगों पर तेल लगाकर गाय के पीठ पर वस्त्र चढ़ाया जाता है। गाय को खाने के लिए गुड़, फल व् मिठाई देकर धूप बत्ती से पूजा की जाती है। जिन के घर में कोई गाय नहीं होती तो वे गौशाला जाकर गौ पूजा करते हैं। गोकुल, वृन्दावन और ब्रज में यह त्यौहार बड़े हर्ष और उल्लास के साथ धूम धाम से मनाया जाता है।

इस त्यौहार की कई कथाएं भगवान कृष्ण के साथ संबंधित हैं। जानिए क्या है कथा –

जैसे ही कृष्ण भगवान 5 वर्ष के हुए और छठे वर्ष में प्रवेश किया तो अपनी माँ के सामने ज़िद करने लगे कि अब मैं बड़ा हो गया हूँ, मैं छोटे छोटे बछड़े लेकर नहीं बल्कि सारी गईयां लेकर जाऊंगा। भगवान कृष्ण ने इतनी ज़िद की कि माँ को हर माननी पड़ी और कहा कि अपने पिता जी से आज्ञा मांग लो। पिता जी को भी उनकी ज़िद के आगे झुकना पड़ा। लेकिन उन्होंने कृष्ण जी को समझाया कि कोई शुभ मुहूर्त निकलवाकर तुम्हें गायों के साथ भेजेंगे। कृष्ण जी के पिता शुभ मुहूर्त निकलवाने के लिए “शांडिल्य ऋषि” के पास गए तो उन्होंने बताया कि अभी इसी समय के अलावा एक साल तक और कोई मुहूर्त नहीं है।

वह दिन वही अष्टमी का दिन था जब कृष्ण जी ने गैयां पालन कार्य शुरू किया। माता ने कृष्ण जी को इस कार्य के लिए खूब तैयार किया। और गायों तथा बछड़ों को भी सुन्दर तैयार किया। जब माँ ने कृष्ण को पैरों में डालने के लिए पादुका दी तो उन्होंने नहीं पहनी और कहा कि सभी गायों को भी पहनाओ। माँ के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था और कृष्ण पैरों में बिना कुछ पहने ही चले गए। गायों को चराने के लिए तथा गौचरण के कारण कृष्ण जी के नाम गोपाल, गोविन्द पड़ा।

ब्रिज में इंद्रदेव के प्रकोप को लेकर कृष्ण चमत्कार की कथा 

एक बार ब्रिज में इंद्र देव का प्रकोप इतना बरसा कि सभी गाँव वालों को लगा कि अब बचना मुश्किल है। तब श्री कृष्ण ने सभी को बारिश के भयंकर रूप से बचाने के लिए पूरा गोवर्धन अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और लगातार 7 दिन तक उठाए रखा। सभी गाँव वालों, जीव जंतुओं को उस पर्वत के नीचे शरण मिली। जिस दिन वह गोवर्धन पर्वत उठाया उस दिन को गोवर्धन पूजा के नाम से त्यौहार मनाया जाता है। जब 7 दिन पश्चात् इंद्रदेव ने अपनी हार मान ली तब कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली से नीचे उतारा। इसी दिन को गोपाल अष्टमी के नाम से मनाया जाता है।

गोपाल अष्टमी के दिन गायों की पूजा कर अच्छा भोजन, चारा इत्यादि खिलाया जाता है। साथ ही ग्वालों को भी दान में वस्त्र, फल व् मिठाई दिए जाते हैं। बरसाना, मथुरा, वृन्दावन, गौशाला, श्री कृष्ण मंदिर, श्री नाथ जी मंदिर तथा इस्कॉन मंदिर में इस त्यौहार को लेकर खूब रौनक लगती है।

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* (राधा का श्री कृष्ण के संग गौचरण के लिए जाना)

(राधा भी कृष्ण के साथ जाने की ज़िद करने लगी लेकिन राधा को किसी ने अनुमति नहीं दी। और यह कह दिया कि तुम लड़की हो तुम गायों को चराने के लिए नहीं जाओगी। जब राधा ने लड़की शब्द सुना तभी राधा के दिमाग में ग्वालों वाले कपड़ों की सूझी। राधा ने ग्वालों की तरह ही कपड़े पहन लिए तथा बालों को समेट कर सर पर कपडा बांध लिया जिससे कि राधा को कोई पहचान न सका। इस तरह राधा कृष्ण के साथ गाय चराने के लिए चली गई। ) 

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Priyanka G

Writer | VO Artist | TV Presenter | Entrepreneur

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