“गोवर्धन पूजन पर्व”
Govardhan Puja in 2023 is on the Monday, 13th of Nov 2023
भारतीय संस्कृति में भिन्न प्रकार के रीति रिवाज़ व् त्यौहार शामिल हैं। सभी भारतीय अपने-अपने धर्मकर्म व् इच्छा अनुसार त्यौहारों को बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
भारत में सभी त्यौहारों के पीछे अपना एक महत्त्व व् कारण है। जैसे कि-
रक्षाबंधन, श्रवण मास, जन्माष्टमी, नवरात्री, दशहरा, दिवाली, करवाचौथ, अहोईअष्टमी इत्यादि।
इन्हीं सभी त्यौहारों में गोवर्धन पूजा का भी विशेष महत्त्व है।
कब मनाया जाता है गोवर्धन पूजन का दिन ?
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। जोकि कृष्ण अवतार के बाद द्वापर युग से शुरू हुआ।
कहाँ मनाया जाता है गोवर्धन पूजन का पर्व ?
भारत के उत्तरी राज्यों में गोवर्धन पूजन का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्ण नगरी मथुरा में विशेष रूप से गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन खास कर कृष्ण भगति में लीन भक्तजन कृष्णमय माहौल में रमें होते हैं।
कैसे की जाती है गोवर्धन पूजा ?
गोवर्धन एक पर्वत का नाम है जिसकी विशेष रूप से पूजा की जाती है। कृष्ण नगरी मथुरा में गिरिराज गोवर्धन पर्वत की महत्वता गायों के चारे की प्राप्ति के कारण विशेष महत्त्व पूर्ण मानी जाती है। जैसे कि हिन्दू धर्म में सभी नदियों में गंगा नदी पवित्र है। वैसे ही गाय पवित्र पशुधन है। गाय अपने दूध से हम सभी को स्वास्थ्य रुपी धन प्रदान करती है।
आज का दौर आधुनिकता का दौर है। लेकिन पहले ज़माने में लोग पूरी श्रद्धा से, पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना किया करते थे। गोवर्धन पूजन के लिए इस दिन गाय के गोबर से घर के आंगन में एक प्रतिमा गिरिराज की बनाई जाती है। और गोबर से ही एक पर्वत का रूप बना कर उसे फूल पत्तों, टहनियों से सजाया जाता है। इसी बीच ग्वाले भी बनाए जाते हैं।
Govardhan puja
भोग लगाने के लिए ख़ास 56 भोग या 108 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। खील, पताशे, मिठाई, फल इत्यादि भगवान को भोग के रूप में चढ़ाए जाते हैं। घी का दीपक जला कर आरती की जाती है। इसके बाद प्रसाद के रूप में भोग बांटा जाता हैं।
क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पूजन पर्व?
प्रत्येक त्यौहार को मनाए जाने का कोई कारण अवश्य होता है। कृष्ण युग में श्री कृष्ण द्वारा वैसे तो कईं लीलाएं की गई लेकिन एक लीला गिरिराज गोवर्धन पर्वत को समर्पित है।
क्या है इसके पीछे की कहानी आइए जानते हैं –
कृष्ण युग की ही बात है। दीपावली से अगले दिन सुबह से लोग पूजा की त्यारियां करने लगे। घर घर खूब पकवान बन रहे थे। यह देख भगवान कृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि आज सभी किसकी पूजा की तैयारियां हो रही हैं। माँ ने श्री कृष्ण को बताया कि इंद्र देव वर्षा करते हैं। उसी से हमें अन्न व् गायों को घास, चारा मिलता है।
इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि गाय तो गोवर्धन पर्वत पर चरती हैं। फिर तो उसी की पूजा होनी चाहिए। इंद्र तो अपने घमण्ड में चूर कभी किसी को दर्शन भी नहीं देता। जब इंद्र देव को कृष्ण की इस बात का पता चला तो वे क्रोधित हो गए। और उन्होंने इतनी वर्षा कर दी कि सभी बृजवासी परेशान हो गए।
Govardhan puja
सभी श्री कृष्ण पर नाराज़ होने लगे। तब श्री कृष्ण ने भयंकर बारिश से लोगों को बचाने के लिए पूरे गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया। और सभी लोगों व् गायों को उस पर्वत के नीचे शरण दी। साथ ही सुदर्शन चक्र से पर्वत पर वर्षा गति को नियंत्रित किया। शेषनाग की सहायता से पानी को आने से रोका।मथुरा, गोकुल, वृन्दावन व आसपास के क्षेत्र के लोगों ने भरी बारिश से बचने के लिए इस पर्वत के नीचे शरण ली।
इंद्र वर्षा को तेज़ करते रहे और कृष्ण भगवान ने पर्वत को 7 दिनों तक उठाए रखा। तब इंद्र देव ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी से ज्ञात हुआ कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु जी के अवतार हैं। इसके बाद इंद्र देव ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना की, उनकी पूजा की। तब श्री कृष्ण ने पर्वत को अपनी ऊँगली से नीचे उतारा। तभी से यह गोवर्धन पूजन का पर्व चला आ रहा है।
इसीलिए आज भी लोग जब वृन्दावन जाते हैं तो गोवर्धन परिक्रमा करते हैं। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने लोगों के मन से इंद्र देव के प्रति डर को दूर किया। इसके बाद से ही लोग इंद्र देव की पूजा नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।
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