“कब,क्यों,कैसे,कहाँ मनाई जाती है जन्माष्टमी”
Krishna Janmashtmi
जिस दिन कोई जीव इस धरती पर जन्म लेता है उस दिन को व्यक्ति का जन्मदिन कहते हैं। और फिर हर वर्ष उसी दिन को जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। सभी अलग अलग ढंग से अपना जन्मदिन मनाना पसंद करते हैं। लेकिन कुछ महान शख्सियतें ऐसी होती हैं जिनकी जन्मतिथि पर पूरा समाज, गांव, देश जश्न मनाता है। परन्तु कुछ महान आत्माएं जिन्हें हम ईश्वर के रूप में पूजते हैं उनका जन्मोत्सव देश तो क्या विदेशों में भी मनाया जाता है। ऐसा ही एक उत्सव है जिसे “जन्माष्टमी” के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी की धूम भारत तो क्या विश्व भर में प्रसिद्ध है।
आइए इस लेख में जानते हैं जन्माष्टमी से जुड़ी विशेष बातें
कृष्ण रूप से पहले 7 अवतार
भगवान कृष्ण के रूप में जन्म का कारण
कान्हा का जन्म कब और कहाँ हुआ
कृष्ण लीलाएं
कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी
झाँकियाँ तथा व्रत महत्व
पढ़िए जन्माष्टमी पर खूबसूरत कविता “जन्माष्टमी”
कृष्ण रूप से पहले अवतार
श्री कृष्ण को भगवान श्री विष्णु का 8वां अवतार माना गया है। कृष्ण का अवतार लेने से पहले भगवन विष्णु ने 7 अवतार लिए थे। वह थे-
मत्स्य अवतार
कूर्म अवतार
वराह अवतार
नरसिंह अवतार
वामन अवतार
परशुराम अवतार
राम अवतार
और उक्त सभी अवतारों के बाद 8वां अवतार श्री कृष्ण के रूप में लिया। कहा जाता है कि जब जब पृथ्वी पर पाप बढ़ता है तब तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं।
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श्री कृष्ण के रूप में जन्म का कारण
द्वापर युग में मथुरा (उत्तरप्रदेश,भारत) में उग्रसेन का पुत्र कंस राजा था। वह बहुत ही अत्याचारी राजा था। उसके बढ़ते हुए अत्याचार के कारण व इसपर विराम लगाने के लिए श्री कृष्ण के रूप में भगवान विष्णु का धरती पर 8वां जन्म हुआ। यह जन्म मथुरा के राजा कंस की बहन देवकी की कोख से हुआ। कंस ने अपनी बहन देवकी की शादी यादव कुल में वासुदेव के साथ की थी। एक समय में राजा कंस को यह आकाशवाणी हुई थी कि देवकी की 8वीं संतान तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगी।
इस आकाशवाणी के कारण राजा कंस ने देवकी की एक एक कर सातों सन्तानों को मौत के घाट उतार दिया। साथ ही देवकी और वसुदेव को कारागार में बंदी बना दिया ताकि कंस उनकी होने वाली 8वीं संतान को भी निश्चित ही ख़त्म कर सके। जोकि उसके सर पर काल बनकर मंडरा रही थी। लेकिन ऐसा हो न सका।
जन्म कहाँ और कब हुआ
मथुरा के कारागार में ही भादो मास (भाद्र पद) की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात के समय रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण भगवान का जन्म हुआ। तब वासुदेव को आकाशवाणी हुई कि गोकुल में उन के मित्र नंदबाबा के घर कन्या पैदा हुई है। वासुदेव कृष्ण को वहां छोड़ आएं और उस कन्या को अपने साथ ले आएं। ये ईश्वर की लीला ही थी कि जेल के सभी दरवाज़े अपने आप खुल गए और सभी पहरेदारों को गहरी नींद आगई।
वासुदेव ने वैसा ही किया जैसा की आकाशवाणी में कहा गया था। कृष्ण को टोकरी में छुपा कर माता यशोधा तथा नन्द बाबा के पास छोड़ आए और उनकी कन्या को अपने साथ ले आए। वासुदेव के कारागार में लौटने के बाद दरवाज़े बंद हो गए और पहरेदार फिर से जाग गए। कन्या के रोने की आवाज़े आने लगी। तब राजा कंस को इसकी सुचना दी गई। वह कन्या देख कर हैरान हुआ कि आकाशवाणी के अनुसार तो 8वीं संतान पुत्र होना चाहिए था। फिर भी उसने उस कन्या को मारना चाहा। जैसे ही उसने कन्या को उठाया वह मायावी कन्या उछल कर आकाश में चली गई।
इस प्रकार भगवान कृष्ण का पालन पोषण यशोधा माता और नन्द बाबा ने किया।
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लीलाएं
श्री कृष्ण अधर्मियों का नाश करने के लिए तथा अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए। इस दौरान उन्होंने बहुत सी लीलाएं की, अनेकों चमत्कार किए। कंस का वध किया, अर्जुन के सारथी बने, दुनिया को गीता उपदेश दिया, युधिष्टर को राजा बनाकर धर्म की स्थापना की। कृष्ण ने बाल्यावस्था में ही कई बड़े-बड़े कार्य किए। जन्म के कुछ समय बाद ही राक्षसी पूतना का वध किया जोकि कंस द्वारा भेजी गई थी। उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त नामक राक्षस का भी वध किया। साथ ही गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला, ये सब भी मुख्य लीलाएं हैं।
कैसे मनाई जाती है जन्मष्टमी
तैयारी –
जन्माष्टमी आने से कई दिन पहले ही मानो जश्न सा शुरू हो जाता है। झाँकियाँ बननी शुरू हो जाती हैं, मंदिरों की विशेष रूप से सफाई के बाद ख़ूबसूरत ढंग से सजावट की जाती है। झाँकियाँ इस प्रकार से श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का व्याख्यान करती हैं मनो असली ही हों। कृष्ण जन्म से लेकर बाल्य काल की सभी लीलाओं को झाँकियों के रूप में दर्शाया जाता है। विभिन्न रंग बिरंगी जग-मग करती बत्तियों से रौनक और भी बढ़ जाती है। भक्तजन इस दिन व्रत रखते हैं। इसके अलावा कई लोग ख़ास व्यंजन भी बनाते हैं जैसे कि चौलाई के लड्डू, धनिया पंजीरी, सूखे मेवों के पकवान इत्यादि।
व्रत –
घर के सदस्य प्रातः काल से ही व्रत रखते हैं। उसके बाद त्यार होकर मंदिर में पूजा पाठ करते हैं। इस दिन श्री कृष्ण को झूला झुलाने का विशेष महत्व है। मंदिरों में झूले को सजाकर उसमें कृष्ण भगवन को विराजमान किया जाता है। सभी लोग दर्शन कर भगवन को झूला झुलाते हैं। इसी प्रकार घरों में भी लोग अपनी श्रद्धा अनुसार कृष्ण भक्ति में लीन होकर इस दिन को मनाते हैं।
पूरा दिन और रात 12 बजे तक भजन कीर्तन चलता है। मंदिरों के आस पास मेला सजता है। यहाँ विभिन्न प्रकार के स्टाल्स लगते हैं, झूले लगते हैं। पूरा माहौल एक जश्न की तरह होता है। इसके पश्चात रात के ठीक 12 बजे कृष्ण जन्म के नगाड़े गूंजने लगते हैं। मंदिरों में घंटियों और जयकारों की गूँज हर ओर सुनाई देती है। उस समय भगवन कृष्ण को भोग लगाकर व्रत खोला जाता है। सबसे पहले चरणामृत लिया जाता है और फिर फलाहार खाया जाता है।
दही हांडी –
जन्माष्टमी के ख़ास मौके पर कई जगह दही हांड़ी का कार्यक्रम भी आयोजित होता है। जिसमें कुछ ऊंचाई पर दही का मटका रस्सी पर टांगा जाता है। फिर कुछ लोग गोलाकार में इकठा होकर एक एक की पीठ पर चढ़कर उस मटके को तोड़ने का प्रयास करते हैं। जब तक मटका फोड़ न दिया जाए कोशिश जारी रहती है। और वहाँ मौजूद लोग इन सब गोपालों का उत्साह बढ़ाते हैं।
महत्व –
ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से तथा विधि पूर्वक पूजन करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। घर में सुख समृद्धि आती है। सच्चे मन से की गई भक्ति, व्रत कुछ भी निष्फल नहीं जाता।
भारत वासियों के इसी विश्वास, भक्ति, श्रद्धा व इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत में सभी त्यौहार उत्साह और प्रेम पूर्वक मनाए जाते हैं।
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कहाँ कहाँ मनाई जाती है जन्माष्टमी
विशेष तौर पर मथुरा-वृन्दावन में जन्मष्टमी का खास महत्व है। इस दिन मथुरा नगरी भक्तों के जोश व भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है। उत्तर भारत में विशेष तौर पर इसका नज़ारा देखने को मिलता है। भारत के विभिन्न राज्यों- बिहार, वेस्ट बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरला, तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश में भी जन्माष्टमी मनाई जाती है। साथ ही विदेशों में भी कृष्णा नाम की गूँज सुनाई पड़ती है।
Krishna Janmashtmi
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