“नवरात्रि”

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Navratri

Navratri 2023 ~ सर्व विदित भारतीय त्यौहारों में मुख्य त्यौहार नवरात्री का त्यौहार भी सम्लित है। जब जब धरती पर पाप बढ़े भगवान ने पापों का नाश करने के लिए अवतार धारण किया। पाप व पापियों का नाश करने के लिए महिला के रूप देवी शक्ति का अवतार धारण किया।

देवी रूप कैसे बना –

शास्त्रों के अनुसार एक बार देवताओं को भगवान “महिषासुर” जो एक राक्षस था उसने स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। उस समय सभी देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव ( त्रिमूर्ति) के पास गए। त्रिमूर्ति ने अपने शरीर की ऊर्जा और शक्ति से एक आकृति बनाई और उस में विभिन्न शक्तियों का संचार किया। जिसने बहुत ही आकर्षक रूप धारण किया इसी रूप को सभी देवताओं ने अलग अलग शक्तियां प्रदान की। इस लिए इसे शक्ति कहते हैं। इस शक्ति को माँ देवी दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली इत्यादि कईं नामों से जाना जाता है।

देवी के स्वरुप-

देवी के 9 स्वरुप हैं जिन्हें नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
पहला नाम ‘शैलपुत्री’ – बैल की स्वारी, हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए माँ शैलपुत्री। पर्वत राज हिमालय के घर शैल पुत्री के रूप में देवी माता का जन्म हुआ।
दूसरा नाम ‘ब्रह्मचारिणी’ – तपस्या द्वारा देवी ने शिव को पाया तथा ब्रह्मचारिणी नाम कहलाया।
तीसरा स्वरुप ‘चद्रघंटा’ – जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक विराजित है।
चौथा स्वरुप ‘कुष्मांडा’ – इस स्वरुप में ब्रह्माण्ड को उत्पन करने की शक्ति प्राप्त करने के कारण इन्हें कुष्मांडा नाम दिया गया। यह अपने अंदर पूरे ब्रह्माण्ड को समेटे हुए हैं।
पांचवी देवी सकन्ध माता – देवी के दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। कार्तिकेय का नाम सकन्ध है इसलिए यह सकन्ध माता कहलाती हैं।
छठा स्वरुप कात्यायनी – महर्षि कात्यायन ने बहुत तपस्या की उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया।
सातवीं पूज्य देवी कालरात्रि – हर प्रकार से हर समय सभी संकटों का नाश करने वाली महामाया काल रात्रि देवी माता है।
आठवां स्वरुप महा गौरी माँ – नवरात्र के आठवें दिन माँ महा गौरी का व्रत पूजन किया जाता है।
नौवीं देवी स्वरुप सिद्धि धात्री – उनका भक्त जो उन्ही के प्रति समर्पित हो वह उन्हें सिद्धि प्रदान करती हैं।

इस प्रकार दैत्यों का नाश करने के लिए माँ अम्बे ने अनेक रूप धारण किए।
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नवरात्रों के प्रकार – साल में कितनी बार मनाए जाते हैं नवरात्र navratri

एक वर्ष में वैसे तो नवरात्र 4 बार आते हैं। जिनमें से 2 बार के नवरात्र के बारे में तो शायद सभी जानते हैं। एक तो अप्रैल माह में जिन्हें कि “चैत्र नवरात्र” के नाम से जानते हैं तथा दूसरे “शरद नवरात्र” जो अश्विन मास में आते हैं। इनके अलावा साल में 2 बार “गुप्त नवरात्र” भी होते हैं जो आषाढ़ तथा माघ मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं।

गुप्त नवरात्र का महत्व –

वैसे कहा तो ये भी जाता है कि पूजा, भक्ति, साधना को जितना गुप्त रखा जाए उसका उतना ही ज्यादा फल मिलता है। और ऐसा भी माना जाता है कि गुप्त नवरात्र में तंत्र मंत्र द्वारा सीढियाँ प्राप्त करने के लिए पूजा की जाती है।

नवरात्र विधि –

देवी देवताओं में विश्वास रखने वाले हिन्दू लोग बहुत श्रद्धा के साथ अपने त्यौहारों को मनाते हैं। नवरात्रों का भी भक्तों को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। क्योंकि हिन्दू धर्म में इन 9 दिनों को बहुत शुभ माना जाता है।

प्रारम्भ विधि – नवरात्र प्रारम्भ होने से कई दिन पहले मंदिरों में विशेष सफाई इत्यादि की जाती है। देवी के मंदिरों को विशेष तौर से सजाया जाता है। दर्शन के लिए आने वाले भक्तों के लिए विशेष प्रबंध किए जाते है। घरों में भी अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार देवी पूजन किया जाता है। देवी की मूर्ति के सामने कलश स्थापना की जाती है। कलश के निचे शुद्ध मिटटी बिछा कर उसमें जौं की बिजाई की जाती है। जिसे लोग खेत्री भी कहते हैं। पहले नवरात्र प्रातः काल अखंड ज्योत प्रज्वलित की जाती है।

पूजन विधि तथा पहला नवरात्र –

प्रतिदिन शुद्ध होकर सब से पहले देवी के नाम की बीजी गई खेत्री को जल दिया जाता है। फिर अखंड ज्योत में जरुरत के अनुसार घी डाल कर, धूप- बत्ती कर दुर्गा स्तुति का पाठ किया जाता है। और देवी माँ की आरती की जाती है। इस प्रकार पहले नवरात्र पर माँ शैल पुत्री की पूजा होती है। तथा तीन दिन तक देवी दुर्गा की पूजा उसकी शक्ति और ऊर्जा की होती है। पूजन के बाद सवेरे से ही व्रत शुरू हो जाता है।

दूसरे नवरात्र में माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। माँ के इस रूप में दाहिने हाथ में जाप करने वाली माला तथा बाएं हाथ में कमण्डल दर्शाया होता है। माँ ने महिषासुर नामक राक्षस का अंत कर देवताओं और मनुष्यों की रक्षा की थी। शक्ति एक लेकिन नाम अनेक हैं। शुभ निशुंभ नामक का संहार किया। दुर्गम नामक राक्षस का नाश किया। इस कारण देवी का नाम दुर्गा पड़ा।

इसी प्रकार देवताओं की पत्नियों का सतीत्व खतरे में पड़ा तब देवी ने भ्रामरी रूप अवतार लेकर महिलाओं की रक्षा की। नवरात्रों में यह आठवां नवरात्र माना जाता है और अष्टमी पूजन का इसी लिए विशेष महत्व है। नौवें नवरात्र पर माँ चंडिका देवी की पूजा होती है। चण्ड मुंड नामक राक्षसों के प्रकोप से प्राणियों और देवताओं को मुक्ति दिलाने के माँ दुर्गा ने चंडिका रूप धारण किया था।

इस प्रकार नवरात्रों में सुबह शाम माँ दुर्गा के अलग अलग रूपों की पूजा होती है।

व्रत में फलाहार –

जो भी नवरात्रों में व्रत रखता है वह अनाज व अनाज से बना कुछ भी ग्रहण नहीं करता। वह केवल फलाहार ही लेता है। वह भी एक समय, जैसे कि सिंघाड़े व कुट्टू के आटे की टिक्की, हलवा और रोटी खाई जा सकती है। चौलाई की खीर व लड्डू बनाकर खाए जाते हैं। इसके अलावा साबूदाने, दूध व फल लिया जासकता है। कुछ भक्त अष्टमी तो कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन कर व्रत खोलते हैं।

कन्या पूजन विधि –

छोटी छोटी कन्याओं को घर पर बुला कर उनके पैर धुलवाए जाते हैं तथा फिर उन्हें बिठा कर देवी का रूप मान कर उनकी पूजा की जाती है। हाथ पर मौली बांध कर, तिलक लगाकर , लाल रंग कि चुनरी ओढ़ाकर, चूड़ियां इत्यादि देकर उन्हें भोग लगाया जाता है। दक्षिणा के रूप में उन्हें नारियल, फल व श्रद्धा अनुसार पैसे दिए जाते हैं। इसके बाद भक्त अपना व्रत खोलता है और अनाज ग्रहण करता है।

दसवें दिन दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरे से पहले के ये 9 दिन बहुत भक्तिमय माहौल से गुज़रते हैं।

कहाँ मशहूर है दुर्गा पूजा –

पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता शहर, जहाँ दुर्गा पूजा का त्यौहार पूरे भारत में मशहूर है। वहां दुर्गा को दो नाम दिए गए हैं – “पारा और बरिर”।

बरिर से अभिप्राय है अपने-अपने घरों में देवी की मूर्ति तथा कलश स्थापित कर के पूजा करना।
पारा का अभिप्राय है कि इस त्यौहार को बड़े बड़े पंडाल बनाकर सामूहिक रूप से मनाना। अनेकों मूर्तियों से पंडाल की रौनक व् सुंदरता को बढ़ाया जाता है।

कैसे मनाया जाता है यहाँ नवरात्र का त्यौहार –

चारों तरफ भक्तिमय माहौल होता है। पूरे 9 दिन रौनक व चहल पहल बनी रहती है। पूजन की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए हर क्षण माँ की आराधना की जाती है। पंडाल में दुर्गा माँ की प्रतिमा महिषासुर का वध करते हुए बनाई जाती है। तथा अन्य देवी देवताओं की मूर्ति भी लगाई जाती है। देवी के हाथ में त्रिशूल, चरणों में महिषासुर नामक असुर, पीछे शेर, दाई तरफ माँ सरस्वती व बाईं ओर लक्ष्मी गणेश विराजमान होते हैं। पूर्ण श्रद्धा के साथ सभी लोग इकठ्ठे होकर दुर्गा पूजा करते हैं। नृत्य करते हैं साथ ही रंगो से भी खेला जाता है।
कलकत्ता की दुर्गा पूजा का भव्य नज़ारा कलम से लिखना असंभव है।

अष्टमी के दिन को पुष्पांजलि त्यौहार भी कहा जाता है। इस दिन सभी लोग देवी को पुष्प अर्पित करते हैं। नवमी तिथि को खूब नृत्य किया जाता है और आपस में सभी सिन्दूर से होली खेलते हैं।

विशेष नृत्य –

माँ शक्ति के नाम पर जो नृत्य किया जाता है उसे “धुनुची” नृत्य कहते हैं। इसे शक्ति नृत्य भी कहा जाता है। नवरात्री के 9 दिनों के बाद विजय दशमी के दिन दुर्गा मूर्ति विसर्जन किया जाता है। माँ दुर्गा की मूर्ति को खूब सजा कर ढोल बाजे के साथ नाच गाना करते हुए और सिन्दूर के साथ खेलते हुए दुर्गा मूर्ति को जल में विसर्जित किया जाता है। मेल मिलाप के साथ ही इक दूजे को मिठाई खिलाई जाती है।

इस तरंह पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा कि चहल पहल देखते ही बनती है। वहां का नज़ारा और ही होता है। जब भी कभी वहां घूमने का मन बने तो दुर्गा पूजा के दौरान वहां का भक्तिमय माहौल व इस ख़ास पर्व का आनंद ज़रूर लें।
पश्चिम बंगाल की तरह दुर्गा पूजा का एक रूप हरियाणा में भी देखने को मिलता है। कुछ पंजाब के लोग भी इसे मनाते हैं जिसे आम भाषा में “सांझी” कहा जाता है।

क्या है “सांझी”-

हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ गाँव व शहरों में एक छोटी सी मिटटी कि प्रति बनाई जाती है। कुछ गीली मिटटी के ही खिलौने बनाए जाते हैं। मिटटी से बनाई मूर्ति को मिटटी से बने गहनों से सजाया जाता है। फिर दीवार पर गोबर से प्रतिमा बनाई जाती है। और उसके ऊपर यह मिटटी से बने सामान को चिपकाया जाता है। मिटटी के खिलौनों को रंगों से सजाया जाता है।

पूजन विधि

मिटटी से बनाई इस मूर्ति को माँ का रूप मान कर 9 दिन यानि पूरे नवरात्रों में दोनों समय इस सांजी के आगे ज्योत जलाई जाती है। घर में दोनों समय जो भी खाना बनता है उसका पूरी शुद्धता के साथ देवी को भोग लगाया जाता है। पहले ही दिन देवी की इस प्रतिमा को लाल रंग की चुनरी ओढ़ाई जाती है।

गीत व्यवस्था

पहले नवरात्र से लेकर नवमीं की रात्रि तक प्रतिदिन शाम के समय गली मौहल्ले के बच्चे एकत्र होकर सांजी माँ के आगे बैठ कर हर घर में जाकर गीत गाते है। जिस घर में बच्चे गीत गाते हैं तो उस घर से उन्हें प्रसाद के रूप में मक्की के भुने हुए दाने, मूंगफली, मिठाई दी जाती है।

सांझी विसर्जन

दशमी वाले दिन प्रातः काल घर के सदस्य नहा कर शुद्ध वस्त्र पहन कर माँ का पूजन करते हैं। घर की सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। और फिर सांझी माता की विदाई की जाती है। घर से ले जाते समय सांझी के साथ पंजीरी का भोग बनाया जाता है। इकट्ठे होकर जब सांजी विसर्जन किया जाता है तब पंजीरी का प्रसाद सभी में बांटा जाता है।

इस दौरान सांझी के कुछ ख़ास गीत भी गाए जाते हैं।

“सांजी तो मांगे हरा हरा गोबर
कहाँ से लाऊँ सांजी हरा हरा गोबर
मेरा तो बीरण (भैया) ग्वालों पे बैठा
हरा हरा गोबर लैन्दड़ उठया
लै मेरी सांजी तू हरा हरा गोबर
सांजी तो मांगे हरी हरी चुनरी
कहाँ से लाऊँ सांजी हरी हरी चुनरी
मेरा तो बीरण बजाजी पे बैठा
हरी हरी चुनरी लैन्दड़ उठया
लै मेरी सांजी तू हरी हरी चुनरी
सांजी तो मांगे सोने के गहने
कहाँ से लाऊँ सांजी सोने के गहने
मेरा तो बीरण सुनरों पे बैठा
सोने के गहने लैन्दड़ उठया
लै मेरी सांजी तू सोने के गहने”

कुछ विशेष राज्यों की विशेष मान्यताएं हैं। भारत विभिन्ताओं का देश है इसलिए यहाँ सभी राज्य अपने-अपने ढंग से त्योहारों को मनाते हैं।
पंजाब – हरियाणा –

यहाँ मिले जुले रिवाज़ हैं। यहाँ लोग 7 दिन व्रत करके अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन करते हैं। कहीं कहीं पर जागरण व भंडारे का आयोजन भी होता है।

बंगाल –

यहाँ के हर गली मौहल्ले के किनारों पर पंडाल सजाए जाते हैं। सभी आकर देवी पूजा वहीं पंडाल में करते हैं। सब मिलकर नारी शक्ति माँ दुर्गा की पूजा करते हैं।

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक –

इन तीनो जगहों पर एक जैसे रिवाज़ हैं। मिटटी की छोटी छोटी मूर्तियां बनाते हैं। और मिटटी से ही छोटे छोटे घर , घोड़ा, गाड़ी व अन्य मूर्तियां बनाकर इनपर रंग लगाते हैं। सीढ़ीनुमा स्टेज पर इन मूर्तियों को विराजमान कर सजाया जाता है जोकि एक म्यूजियम जैसा लगता है। क्योंकि एक ही पंडाल में 100 मूर्तियां राखी जाती हैं। इसे गोलू, बॉम्बे हब्बा तथा बाम्मा गोलू कहा जाता है।

गुजरात –

मिटटी का मटका स्थापित कर इस में सुपारी, एक सिक्का व नारियल रखा जाता है। और इसी के अंदर दीपक जलाया जाता है। नवरात्रों के दौरान पारम्परिक वेश भूषा में लोग गरबा करते हैं।

महाराष्ट्र –

उत्तर भारत की तरह यहाँ भी नवरात्रों में रामलीला आयोजित होती है। जिनके यहाँ देवी मूर्ति स्थापित होती हैं वहां मेहमान दर्शन करने जाते हैं और उन्हें श्रृंगार की वस्तुएं भेंट स्वरुप दी जाती हैं।

केरल –

भारत का सबसे ज्यादा शिक्षित माने जाने वाला राज्य केरल। यहाँ अष्टमी के दिन प्रातः काल अपनी सभी पुस्तकें माँ सरस्वती के चरणों में 2 दिन तक अर्पित करते हैं। फिर दशहरे के दिन पूजन के बाद उठाते हैं। भक्तजन देवी से बुद्धि विवेक और कामयाबी की मंगल कामना करते हैं।

पढ़ें कविता “हे ईश्वर”

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Priyanka G

Writer | VO Artist | TV Presenter | Entrepreneur

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