Rakshabandhan “कब, क्यों, कैसे, कहाँ मनाया जाता है रक्षा बंधन”
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नाम से ही पहचाने जाने वाला त्यौहार “रक्षा बंधन” भाई बहन के अटूट प्यार व विश्वास का त्यौहार है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी नामक रक्षा सूत्र बांधती है और भाई भी अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है। इसीलिए इसे रक्षा बंधन का त्यौहार कहा जाता है।
रक्षा बंधन के त्यौहार की शुरुवात लगभग 6 हज़ार वर्ष पहले हुई थी। यह त्यौहार श्रावण मास ( सावन ) की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्यौहार को इसी दिन क्यों मनाया जाता है इसके पीछे पौराणिक मान्यताएँ तथा कुछ कथाएं हैं।
भगवान श्री कृष्ण व द्रौपदी की कथा
महाभारत काल में रक्षा सूत्र का उल्लेख है कि अपनी राजधानी इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में शिशुपाल भी शामिल हुआ था। यज्ञ के दौरान शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया। तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया।
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण भगवान की तर्जनी उंगली कट गई थी। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्री कृष्ण की ऊँगली पर बाँधा और बहते खून को रोक दिया था। वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। उस समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह इस वस्त्र के एक-एक धागे का ऋण चुकायेंगे। फिर श्री कृष्ण भगवान ने भाई के नाते चीर हरण के समय द्रौपदी की रक्षा की थी।
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माँ लक्ष्मी, भगवान विष्णु और राजा बलि की कथा
रक्षा बंधन को लेकर यह कथा माँ लक्ष्मी, भगवान विष्णु और राजा बलि से सम्बंधित है।
राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने की कोशिश की तो देवराज इंद्र अपनी प्राथना लेकर भगवान विष्णु के पास गए। भगवान, वामन का अवतार लेकर राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। राजा बलि ने वामन अवतार भगवान विष्णु को वचन दिया कि वह भिक्षा में जो भी मांगेगा, उसे दिया जाएगा। भगवान विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली व राजा बलि ने अपना वचन निभाते हुए वामन अवतार भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने हेतु कहा कि वह तीन पग भूमि नाप ले।
भगवान विष्णु ने पहले पग में पृथ्वी व दूसरे पग में स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के पहले ही राजा बलि भांप चुका था कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। उसने अपना शीश भगवान विष्णु के आगे झुका दिया और उनसे तीसरा पग अपने शीश पर रखने के लिए निवेदन किया। इस प्रकार राजा बलि अपना संपूर्ण राज्य गंवाकर पाताल लोक में रहने को विवश हो गया। तब राजा बलि ने अपनी भक्ति से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन लिया।
भगवान विष्णु की प्रतीक्षा कर रही देवी लक्ष्मी इस बात से चिंतित हुई। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार में अपने पति की वापसी मांगी। इस तरह लौटते समय माँ लक्ष्मी अपने पति को साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।
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सिकंदर और राजा पुरु की गाथा
सिकंदर की पत्नी ने राजा पोरस को राखी बाँध कर अपने सुहाग की रक्षा का वचन माँगा था। विश्वविजय के लिए निकला यूनान का सम्राट सिकंदर भारत पहुँचा। तब उसका सामना भारत के पुरूवंश के वीर राजा पोरस से हुआ। सिकंदर और पोरस के बीच घमासान युद्ध हुआ। युद्ध में पोरस की सेना ने सिकंदर की सेना को कड़ी टक्कर दी। हालात को देखते हुए सिकंदर की पत्नी ने अपनी पति को बचने का प्रयास करते हुए पोरस को राखी भेजी। वहीं पोरस ने भी धागे यानि राखी का मान रखते हुए सिकंदर को छोड़ दिया था।
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राणा सांगा, रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी
एक समय में गुजरात के शासक बहादुर शाह ज़फर ने चित्तौड़ (राजस्थान) पर हमला कर दिया था। उस दौरान चित्तौड़ की विधवा रानी कर्णावती ( राणा सांगा की विधवा )ने मुग़ल बादशाह हुमांयू को राखी भेजी और उनसे सहायता मांगी थी। राखी का फ़र्ज़ निभाते हुए हुमांयू ने बहादुर शाह ज़फर से युद्ध किया और विजयी हुए। बहादुर शाह ज़फर को हराकर चित्तौड़ के शासन की बागडोर अपनी मुँहबोली बहन रानी कर्णावती के पुत्र विक्रमादित्य को सौंप दी।
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युधिष्ठिर की कथा
यह प्रसंग महाभारत के दौरान का है। एक बार युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं सभी संकटों को पार कर सकूं। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि सभी सैनिकों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधों। वह सूत्र समस्त संकट हरकर विजय प्राप्ति सुनिश्चित करेगा।युधिष्ठिर ने ऐसा किया तथा महाभारत युद्ध में विजयी हुए। जिस दिन युधिष्ठिर ने सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधा वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का था।
इन सभी दृष्टांतों के कारण इस दिन की महत्वता बढ़ी। सभी बहनें अपने भाइयों से रक्षा की भावना और भाई की सलामती के लिए रक्षा बंधन का त्यौहार मनाती हैं।
कैसे मनाया जाता है रक्षा बंधन
भारत के प्रत्येक त्यौहार में भगवान को मान्यता दी जाती है व हर त्यौहार पवित्रता से मनाया जाता है। इस दिन सभी सदस्य प्रातः भगवान गणेश जी का पूजन करते हैं। बहनें अपने भाई की लम्बी उम्र की कामना से व्रत रखती हैं। घर में सेवइयां या हलवा या फिर अन्य मिष्ठान बनाया जाता है। कई जगह ये भी रिवाज़ है कि इस दौरान घर के सभी दरवाज़ों पर रक्षा बंधन के चिन्ह के रूप में सतियाँ बना कर लगाई जाती है। इसमें ॐ, शुभ लाभ बनाकर चावल व सिन्दूर का टीका लगाया जाता है। धूप अगरबत्ती से पूजा की जाती है।
इसके बाद भगवान को राखी बांधकर हर बहन अपने हर भाई की कलाई पर धागा या आज कल तो विशेष सुन्दर राखियां उपलब्ध है, वो बांधती हैं। भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसकी सुख समृद्धि की कामना करती है। इसके बाद भाई भी भेंट स्वरुप बहन को कुछ न कुछ उपहार देता है।
बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है तो वह भी इस कामना से लगाती है कि भगवान उसके भाई का मस्तक हमेशा ऊँचा रखे, तरक्की मिले और उसे हर विप्पति पर विजय मिले। तिलक का महत्व धार्मिकता से जुड़े होने के साथ साथ वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक भी है।
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कहाँ कहाँ मनाया जाता है रक्षा बंधन
मुख्य रूप से रक्षा बंधन का त्यौहार उत्तर भारत में मनाया जाता है। इसके अलावा अन्य देशों में भी रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। यूनाइटेड किंगडम (UK), अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल और अन्य कई खाड़ी देशों में जैसे कि सऊदी अरब, ओमान में भी भारतीय त्योहारों को मनाया जाता है। इसका विशेष कारण यह है कि भारत के बहुत से नागरिक विदेशों में रह रहे हैं। काफी संख्या में भारतियों का वहां रहना और भारतियों द्वारा त्यौहार मनाते देखकर विदेशी लोग बहुत प्रभावित होते हैं। उनका रुझान भी भारतीय संस्कृति की तरफ और बढ़ जाता है।
भारत में कई राज्यों में इस त्यौहार के दिन सभी बहनों के लिए बस या रेल यात्रा निशुल्क कर दी जाती है। ताकि किसी को भी आने जाने में आर्थिक परेशानी न हो। रक्षा बंधन के प्रति ऐसी आंतरिक भावना से इस त्यौहार का जोश और भी बढ़ जाता है।
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