“श्रावण मास का महत्व और शिव भक्ति” 

shravan maas or shiv bhakti


Shravan Maas | Shiv Bhakti

भारतीय परम्पराओं के अनुसार हिन्दू धर्म में श्रावण मास का विशेष महत्व है। वैसे तो भारत त्यौहारों का देश है। हर महीने कोई न कोई विशेष दिवस मनाया जाता है। जिस कारण भारत के हर मास की अपनी विशेषता है।

हिन्दू धर्म के कैलेंडर के अनुसार 12 महीनों के नाम इस प्रकार दिए गए हैं-
पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, बैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण( सावन), भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक और मार्गशीर्ष।

पक्षप्रत्येक मास के दो पक्ष होते हैं : कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष।

इन्हें चन्द्रमा की स्थिति के साथ जोड़ा गया है। जिस रात चन्द्रमा का छोटा सा भाग दिखाई देने लगता है। और हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा बढ़ता हुआ 15 दिन में पूरा चाँद दिखाई देता है। पहले दिन से पूरा चाँद दिखाई देने तक की इस स्थिति को “शुक्ल पक्ष” कहते हैं। जिसे कि आम बोली में ‘चानण’ भी कहा जाता है। जिस रात पूर्ण चन्द्रमा दिखाई देता है उसे पूर्णिमा कहते हैं।

इस से अगले ही दिन “कृष्ण पक्ष” शुरू हो जाता है। इस दौरान चन्द्रमा धीरे धीरे कम होकर अगले 15 दिन में बिलकुल गायब हो जाता है। जिस रात बिलकुल भी चन्द्रमा दिखाई नहीं देता वह अमावस्य की रात कहलाती है।


श्रावण मास का महत्व तथा शिव भक्ति

सभी महीनों की अपनी विशेषता के साथ साथ श्रावण मास की अपनी खासियत है। श्रावण मास भगवन शिव को समर्पित है। तथा भगवान शिव इस मास में अपने भक्तों द्वारा की गई भक्ति का विशेष फल प्रदान करते हैं। इसलिए इस मास में शिव भक्ति का विशेष महत्व है।

ऐसी भी मान्यता है कि श्रावण मास में सोमवार के विधि पूर्वक व्रत करने से पूरे वर्ष के सभी सोमवार जितना फल मिलता है। इसी कारण श्रावण मास में अधिक से अधिक लोग सोमवार के व्रत रखने की भावना रखते हैं। बाकि अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार लोग शिव भक्ति करते हैं।
Shravan Maas

व्रत विधि

व्रत रखने वाले भक्त प्रातः काल नित्यप्रति कार्यों से निवृत होकर साफ़ वस्त्र पहन कर मंदिर जाते हैं। फिर किसी पात्र में थोड़ा कच्चा दूध, गंगा जल, शहद, चावल व पानी मिला कर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। नंदी भगवान और पार्वती माता की मूर्ति पर भी जल अर्पित किया जाता है। इसके अलावा बेलपत्र, सुपारी, धतूरा, भांग तथा फूल इत्यादि शिवलिंग पर चढ़ाए जाते हैं। धूप दीप जला कर भगवान को चन्दन का तिलक लगाया जाता है। इसके बाद व्रत की कथा पढ़ी या सुनी जाती है। इसके बाद आरती कर ईश्वर को नमन कर भक्ति भाव से व्रत का पालन किया जाता है।

सोमवार के व्रत में कुछ लोग तो तीसरे पहर के बाद केवल फलाहार ही खाते हैं। वहीं कुछ भक्त तीसरे पहर के बाद केवल एक बार भोजन करते हैं लेकिन इसमें नमक का प्रयोग नहीं करते। मीठा भोजन ग्रहण करते हैं। जो लोग नमक का प्रयोग करते भी हैं तो वो भी सेंधा नमक का।

श्रावण मास में ही व्रत का विशेष महत्व क्या है

श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है। माना जाता है कि इस मास के महत्व को सुनने व पढ़ने से ही भगवान शिव भक्तों पर प्रसन्न होते है। श्रावण मास में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शतरुद्र का पाठ तथा शिव भगवान के नामों का किसी भी प्रकार से जाप या व्रत करने से शिव कृपा प्राप्त होती है।

शिव पुराण के अनुसार जो भी प्राणी श्रावण मास के सोमवार के व्रत रखता है तो शिव जी की कृपा से उन पर कोई संकट नहीं आता। भगवान शिव उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। इस व्रत की खासियत ये भी है कि इसे विधि पूर्वक करने से विवाह सम्बन्धी समस्याएं दूर होती है। वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। बच्चों व जीवन साथी की लम्बी उम्र तथा सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को किया जाता है।

ज्योतिष गणना के अनुसार शिव भक्ति व अलग-2 अभिषेक

शिव भगवान की पूजा करने से व्यक्ति की राशि में चंद्र ग्रह मज़बूत होता है। यदि शिव जी का गन्ने के रस से अभिषेक किया जाए तो लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। पापों के नाश के लिए शहद से अभिषेक करवाया जाता है। शत्रुओं का नाश हो इस के लिए सरसों का तेल शिवलिंग पर चढ़ाए जाने की मान्यता है। निसंतान दम्पति को संतान प्राप्ति के लिए गाय के दूध से भोले नाथ का अभिषेक बताया गया है। इसी प्रकार यह माना जाता है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए भिन्न भिन्न तीर्थ स्थानों के जल से शिव अभिषेक किया जाता है।

भगवान शिव भोले उनका नाम है और वे भोलों के भी नाथ हैं। कन्याओं को शादी से पहले सोमवार के व्रत इसीलिए रखवाए जाते हैं कि उन्हें अच्छा वर मिले।

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कावड़ की महत्वता

कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय 14 रत्न निकले थे। इसमें एक हलाहल विष भी निकला था। सृष्टि की रक्षा हेतु वह विष भोले नाथ ने स्वयं पी लिया था। लेकिन अपनी शक्ति से उस विष को गले के नीचे नहीं जाने दिया। इसी कारण महादेव भोले नाथ का कंठ नीला हो गया। इसीलिए भगवन शिव को नील कंठ भी कहा जाता है।

सभी जानते हैं कि लंकापति रावण शिव भक्त था। वह पैदल यात्रा कर देव भूमि उत्तराखंड में स्थित शिवनगरी हरिद्वार से कावड़ के रूप में गंगाजल लाया। शिव भोले को जल धार अत्यंत प्रिय है इसलिए रावण द्वारा लाया गया वह गंगाजल रावण ने खुद शिव जी को अर्पित किया और वह विष मुक्त हुए। इसी कारण श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु शिव नगरी हरिद्वार से गंगाजल भर कर अपने कन्धों पर लादकर पद यात्रा कर लाते हैं और वही गंगाजल भगवन शिव पर चढ़ाते हैं।

जो श्रद्धालु पैदल यात्रा कर गंगा जल लाते हैं वे समूहों में चलते हैं। इन्हें “कावड़िये” कहा जाता है। श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए उज्जैन, नासिक, हरिद्वार, काशी सहित कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।

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Shravan Maas | Shiv Bhakti

सावन का अंतिम दिन 

गुजरात, गोवा और महाराष्ट्र में सावन के अंतिम दिन “नारियल पूर्णिमा” मनाई जाती है। उत्तर भारत में यही पूर्णिमा “रक्षा बंधन” के रूप में मनाई जाती हैं। इसी प्रकार भिन्न भिन्न प्रांतों में अपने अपने तरीके से त्यौहारों को मनाया जाता है।

इन सभी कारणों से सावन मास भक्ति का माह कहा जाता है। सभी को इस दौरान प्रेम पूर्वक भक्ति और श्रद्धा भाव से भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए।

श्रावण मास के दौरान क्या क्या नहीं करना चाहिए 

किसी भी श्रद्धालु का किसी भी प्रकार से उपहास नहीं करना चाहिए।
मदिरा- मास का सेवन नहीं करना चाहिए।
हो सके तो प्याज़, लहसुन का सेवन भी न करें। क्योंकि यह तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है।
श्रावण मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए।
कांसे के बर्तनों का इस्तेमाल भी श्रावण मास में नहीं करना चाहिए।
पेड़ पौधों, किसी जीव जंतुओं को भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए।
ऐसा कोई भी काम न करें जिसे कि पाप समझा जाता हो।



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Priyanka G

Writer | VO Artist | TV Presenter | Entrepreneur

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16 Responses

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  13. debabrat nayak says:

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  15. Raj kumari says:

    शिव भक्ति
    श्रावण मास
    बहुत सुन्दर वर्णन किया है

  16. Kkwadhawan says:

    Very nice keep it up

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