“पितृपक्ष | श्राद्ध”
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shradh भारत की नींव आदर, सत्कार व विश्वास है। विश्वास के कारण ही भारत में सभी देवी देवताओं की पूजा की जाती है। और विश्वास के आधार पर ही सभी त्यौहार मनाए जाते हैं। माता पिता को भगवान का दर्जा देने वाला भारत देश ही है जहाँ लोग अपने माँ-बाप को भगवान का रूप मानते हैं।
यह मान्यता भी भारतीय धार्मिक कथाओं से ही प्राप्त है। उदाहरण के तौर पर गणेश भगवान जी ने पूरी सृष्टि की परिक्रमा करने के बजाए अपने माता पिता यानि शिव पार्वती जी की ही परिक्रमा की थी। इसी आधार पर कि कहीं आने वाली पीढ़ी अपने पूर्वजों को भूल न जाए इसलिए हिन्दू धर्म के अनुसार पितृपक्ष भी निश्चित रखा गया।
श्राद्ध मनाने का कारणshradh
हिंदू धर्म में माता पिता की सेवा का जो फल बताया गया है वह किसी भी भक्ति पूजा से बढ़ कर है। अपने जन्म दाता व पूर्वजों की याद में पितृपक्ष मनाया जाता है। इसे श्राद्ध का नाम दिया गया है। श्राद्ध आने वाली पीढ़ी को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। श्राद्ध 16 दिनों तक किए जाते हैं । इन 16 दिनों में अपने पूर्वजों का स्मरण किया जाता है जिनके कारण आज पारिवारिक वृक्ष खड़ा है।
ऐसी मान्यता है कि यदि किसी का श्राद्ध व तर्पण विधिपूर्वक न हो तो उस व्यक्ति को इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती।
श्राद्ध नाम क्यों रखा गयाshradh
किसी प्राणी के इस दुनिया से चले जाने के बाद भी उन्हें “श्रद्धा भाव” से कुछ न कुछ तर्पण किया जाता है। इसलिए इस पूजा का नाम श्राद्ध रखा गया।
कब होते हैं श्राद्ध shradh
श्राद्ध करने का विधान भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक का हैं। भाद्रपद की पूर्णिमा को साँझला दिन समझा जाता है। परन्तु यदि किसी की मृत्यु पूर्णिमा के दिन हुई हो तो उन का श्राद्ध इसी पूर्णिमा को किया जाता है। फिर अश्विन मास का पूरा पक्ष पितृ पक्ष होता है।
कैसे करते हैं श्राद्ध shradh
श्राद्ध कुल 16 दिन पितृपक्ष के माने जाते हैं। पितरों और पूर्वजों को जल दिया जाता है। जिस तिथि को जिस पूर्वज की मृत्यु हुई हो उसी तिथि को उस का श्राद्ध किया जाता है। प्रातः काल घर की व परिवार के सदस्यों की शुद्धता के पश्चात् अच्छे पकवान बनाए जाते हैं। आटे में जौं और चावल डाल कर पेड़े के रूप में पिंड दान किया जाता है यह सब एक ब्राह्मण पूजन करवाता है। इस दौरान ब्राह्मण जल के लौटे में काले तिल डलवाकर तथा हाथ में कुसा देकर मृत व्यक्ति के नाम का पूजन करवाता है। पूजन के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन करवाया जाता है। साथ ही फल, मिठाई, वस्त्र व दक्षिणा इत्यादि देकर विदा किया जाता है।
पितृपक्ष क्यों मनाते हैं
ऐसा माना जाता है कि इस पक्ष में यानि इन 16 दिनों में सभी पितृ जिन्हें कई प्रेत के नाम से भी जानते हैं (जिन्हें मुक्ति प्राप्त नहीं हुई)। वह ब्रह्माण्ड की ऊर्जा में पृथ्वी पर विचरते रहते हैं। वह जिस जिस परिवार से सम्बंधित होते हैं वहां से श्राद्ध के रूप में अपना अपना हिस्सा स्वीकार कर वापिस चले जाते हैं। पितृ पक्ष में तीनों पीढ़ियों तक के पूर्वजों के लिए तर्पण व श्राद्ध करना जरुरी है।
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मनुष्य पर 3 प्रकार का ऋण होता है।
- पितृ ऋण
- देव ऋण
- ऋषि ऋण
इन सभी में पितृ ऋण सर्वोपरि है। पुराणों के अनुसार श्री राम द्वारा दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि करने का तथा इनके निर्मित तर्पण करने का उल्लेख है। तुलसी दास जी द्वारा रचित रामचरित मानस में भरत द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र का वर्णन है।
इन्हीं सब उल्लेख व हिन्दू संस्कृति के अनुसार सभी हिन्दू अपने अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करते हैं तथा ब्राह्मणों को आदर सहित भोजन करवाकर दक्षिणा भी देते हैं।
अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या की रात को अर्थात आखिरी श्राद्ध के समय रात में घर के बाहर जल छिड़क कर सभी पितरों / पूर्वजों को विदा कर दिया जाता है।
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