“ज़ुल्मों का बसेरा”
ये रात, रात न हुई
खौफ का अँधेरा हो गया
हर रात में अपराधों का
डेरा हो गया
आज हालात बद्द से बद्द्तर हुए ऐसे
कि दिन में भी ज़ुल्मों का बसेरा हो गया
न दिन में किसी का डर
न दिल में किसी का खौफ रहा
आज भारत का युवा
न जाने कहाँ भटक रहा
यह कमी हमारी शिक्षा में
या लुप्त सभ्यता का असर पड़ा
बदलती तस्वीर भारत की
हक़ीक़त यही कर रही बयां
खतरे में भविष्य देश का
और समय रेत सा फिसल रहा
समय रेत सा फिसल रहा ।।।
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ज्ञान वर्धक 👌👌
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