“जो कुदरत को हो मंज़ूर”
Broken Heart
दिल तो रोता है
पर आँसू नहीं निकलते
पत्थर हो रही आँखें
वो दिल की ज़ुबां भी नहीं समझते
मन ही नहीं जानता
कि मन क्या है चाहता
पर समझे भी कैसे
ग़मों के तूफान ही नहीं थमते
उधेड़ बुन में उलझा मन
और धुंधला गए हैं सपने
शिकायतें भी है बहुत कि वो
कभी साथ क्यों नहीं चलते
दो ज़िंदगानियों को मिलाकर
इक सुंदर स्वपन संजोया था
तब एहसास न हुआ कि
जीवन में क्या खोया था
अब नज़र आने लगी हैं
राहें और मंज़िलें भी अलग
अब तो हमारी परछाइयां भी
मुँह मोड़ने लगी हैं
जो कुदरत को हो मंज़ूर
अब तो बस वो ही सही है।
पढ़ें “Love Forever”
Broken Heart
Heart touching poem
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