“घर किसे कहते हैं”
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“घर किसे कहते हैं”
ईंटों से दीवार बनी
रेत, सीमेंट और बजरी डली
कमरों पे थी मज़बूत छत
बगिया भी खूब सजी
पर इस चार दीवारी को
‘घर’ नहीं कहते हैं
ईंट पत्थर के इस ढांचे को
‘मकान’ कहा जाता है
घर बनता है परिवार से
जिसमें प्रेम से रहा जाता है
दीप-धूप जिसमें जगे
अच्छे-अच्छे पकवान बने
प्यार और सम्मान हो जिसमें
हर त्यौहार खुशहाल बने
।।।
पढ़िए कविता “मेरी रेल”
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“होता न मज़दूर तो!!!”
होता न मज़दूर
तो ये आशियाने न बनते
आशियाने तो दूर
ईंट पत्थर के ठिकाने न बनते
ये तो तकदीर थी उसकी
कि लकीरों में हाथों की
ठाठ बाठ से जीना न होकर
कन्धों पर बोझ ढ़ोते रहे
कोई काम छोटा बड़ा नहीं
छोटी बड़ी तो होती है
सोच इंसान की
बेशक करता वो मज़दूरी
पर अपनी मेहनत से कमाता है
दो वक़्त की रोज़ी रोटी को
दुनिया की ठोकरें खाता है
व्यथा यही मज़दूर की
यही उसकी ज़िन्दगी की कहानी
मजबूरन अपने ख्वाबों को रौंदकर
दूजों के सपनों के महल बनाता है
।।।
जानिए मज़दूर दिवस के बारे में ~ हर साल 1 मई को देश-दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जाता है। मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर साल एक मई का दिन मज़दूरों को समर्पित होता है। जिसे कि हम लेबर डे, श्रमिक दिवस, मजदूर दिवस, मई डे के नाम से भी जानते हैं । मजदूर दिवस का दिन ना केवल श्रमिकों को सम्मान देने के लिए होता है बल्कि इस दिन मजदूरों के हक के प्रति आवाज़ भी उठाई जाती है। जिससे कि उन्हें समान अधिकार मिल सके। अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें >> “कब और क्यों मनाया जाता है मज़दूर दिवस”
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