“कहाँ रूठी है ज़िन्दगी”
अरे सोते रहने वालों
ज़रा उठ जाग कर तो देखो
कहाँ रूठी है ज़िन्दगी
कहाँ है राह रुकी हुई
ज़िन्दगी ने तुमसे नहीं
तुमने ज़िन्दगी से मुँह मोड़ा है
क्या दोष फिर इसमें दुनिया का
तू खुद ही खुद से भगोड़ा है
बंद आँखों से सपने देखने वालों
ज़रा खुद सपने बुन कर तो देखो
ऊंच नीच की लहरें आती जाती
इस बिन ज़िन्दगी का सफ़र अधूरा है
ज़रा देख झाँक कर अंदर अपने
बिन सपनों के तू भी कहाँ पूरा है
कोई लक्ष्य अगर हो जीवन में
हो ललक सपनों को सच्च करने की
उठ खड़ा हो, जाग नींद से
देख तुझसे रूठी नहीं है ज़िन्दगी ।।।
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