“नारी शक्ति”
Nari Shakti
मत मजबूर करो
मत जगाओ दुर्गा स्वरुप नारी को
इतनी वो कमज़ोर नहीं
बस जज़्बात उसपर भारी हैं
मर्यादाओं का मान रखते रखते
सम्मान में शीश निवाती है
मत समझो कमज़ोर उसे
न लाचार, न बेबस है वो
घर की इज्ज़त का गहना पाकर
मान सभी का करती वो
है बंद ज़ुबां, है ख़ामोश मगर
मन में तूफ़ान समेटे
घोर अँधेरे को चीर कर
निकलेगी तोड़ कर ज़ंजीरों को
तब न रुकेगी न थमेगी
बस अपनी धुन में हर राह चलेगी
।।।
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