“स्वाभिमान के आगे कुछ नहीं”
Self respect
ऐसी ज़िन्दगी नाग़वार है मुझे
कभी बोझिल लगे
फिर भी प्यार है मुझे
अपने रोज़मर्रा के कामों से
घर की छत दीवारों से
अपनी भूली बिसरी किताबों से
वो पन्ने लाजवाबों से
समेटे थे कुछ किस्से
कुछ अरमां नए संजोए थे
न टूटे कोई ख़्वाब मेरा
विश्वास के मोती पिरोए थे
माना लाजवाब है ज़िन्दगी
ऊँच-नीच भी है दिखलाती
मिल जाए चाहे प्यार भी कितना
पर सम्मान से ऊपर कुछ नहीं
स्वाभिमान के आगे कुछ नहीं
।।।
पढ़िए “To save every girl child”
👍👍
Very nice
Excellent
Nice Poem!