“देखो बच्चों, देखो घोड़ा”
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Horse
देखो बच्चों, देखो घोड़ा
घोड़ा कितना न्यारा है
सफ़ेद, काला, भूरे रंग का
टक-टक दौड़े, लगता प्यारा है
ताकत इसमें कितनी निराली
खुराक नहीं है ज़्यादा सारी
घास, दाल और चने ये खाकर
ढोता दिनभर सामान है भारी
कभी कहीं तांगे में जुटता
कहीं दूल्हे की शान बढ़ाता
बनता देखो ये बाराती
तब कीमत इसकी बढ़ है जाती
कभी नहीं है बैठता घोड़ा
खड़ा खड़ा ही सो भी लेता
मिटाकर अपनी भूक प्यास को
दौड़ने को फिर तैयार है होता
।।।
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