“उम्र और कर्म”
Age
उम्र को नापा नहीं, तोला जाता है
आंकड़ों में नहीं, कर्मों के फूलों में
पिरोया जाता है
घूँट किसी की नफ़रत
का पिया तो क्या जिया
दिल में तेरे भी द्वेष,उसके भी घृणा
तो भला जीवन भर क्या किया
जब तक होती है ज़िन्दगी
इंसान दौलत कमाता है
जब हो जाता है रुख़्सत
कोई अपना इस जहाँ से
तब कीमत रिश्तों की समझ पाता है
तो ऐ इन्सां देर न कर इतनी
उम्र का आंकड़ा
इक दिन थम जाना है
रब को हिसाब दौलत का नहीं
कर्मों का दिखाना है।
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